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एक ही तालाब को तीन बार बनाया !
पाकुड़ : सरकारी राशि का गबन आज के अफसर व कर्मचारी ऐसे कर रहे हैं कि किसी को खबर तक नहीं होती. लेकिन जब इस पर जांच चलती है तो उस पर से परदा उठना शुरू हो जाता है. नवरोत्तमपुर पंचायत में मनरेगा के तहत एक तालाब को तीन बार बनाने का मामला सामने आया […]
पाकुड़ : सरकारी राशि का गबन आज के अफसर व कर्मचारी ऐसे कर रहे हैं कि किसी को खबर तक नहीं होती. लेकिन जब इस पर जांच चलती है तो उस पर से परदा उठना शुरू हो जाता है. नवरोत्तमपुर पंचायत में मनरेगा के तहत एक तालाब को तीन बार बनाने का मामला सामने आया है.
वो भी कागज पर. इस संबंध में ग्रामीणों ने जांच की मांग की है. सूत्रों के अनुसार, इस काम में तीनों बार पैसे की निकासी हुई, तीन बार एमआइएस भी हुआ. यह संभव कैसे हुआ अंदाजा लगाया जा सकता है. विभाग में शातिर दिमागों की कमी नहीं. इस काम में तीन बार में कुल तीन लाख 11 हजार 520 रुपये की निकासी कर ली गयी है.
प्रखंड के वीरगोपालपुर मौजा के दाग नंबर 181 पर मैमूल शेख के जमीन पर तालाब खुदाई को लेकर कुल 7 लाख 25 हजार 700 रुपये की लागत से मनरेगा योजना के तहत योजना संख्या 38/2013-14 तैयार कर स्वीकृति दिलायी गई.
जमीन मालिक की मानें तो उपरोक्त तालाब में बिना खुदाई के ही पूर्व में किये गये खुदाई को दिखाते हुए फरजी एमआइएस केसहारे तीन लाख 11 हजार 520 रुपये की निकासी कर ली गयी है. इतना ही नहीं 31 मार्च को मार्च लूट की नियत से उपरोक्त योजना में रातों-रात जेसीबी मशीन भी चलाई गई. इस मामले में ग्रामीणों की शिकायत के बाद उपविकास आयुक्त दिलीप कुमार टोप्पो ने बीडीओ संजीव कुमार को जांच का भी निर्देश दिया था. हालांकि जांच के नाम पर लीपापोती करने का प्रयास किया गया.
एक ही प्लॉट नंबर पर तीन बार हुआ योजनाओं का चयन
सूत्रों के मुताबिक, उपरोक्त पंचायत के मैमूल शेख के तालाब दाग संख्या 181 में सर्वप्रथम 8 लाख 11 हजार की लागत से योजना संख्या 191/2010-11 के तहत तालाब खुदाई की स्वीकृति मिली. उस समय संवेदक तत्कालीन प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी सहवान शेख द्वारा एक लाख 17 हजार रुपये की अग्रिम निकासी की गयी थी.
जिसमें तालाब में अलग-अलग स्थित दो जल कुंडों को मिलाने का काम किया गया था. इस बीच ग्रामीणों की शिकायत के बाद योजना को अपूर्ण छोड़ दिया गया. बाद में वित्तीय वर्ष 2011-12 में भी उपरोक्त योजना स्थल पर ही तालाब खुदाई संबंधी योजना को स्वीकृति दी गई. लेकिन तत्कालीन रोजगार सेवक की रिपोर्ट के बाद योजना को तत्काल निरस्त कर दिया गया.
इधर पांच साल के पूरा होते ही पुन: उसी तालाब में तालाब खुदाई के नाम पर 7 लाख 25 हजार 700 रुपये की लागत से योजना को स्वीकृति दी गयी.
ग्रामीणों ने इस मामले को लेकर सवाल उठाया है कि वित्तीय वर्ष 2010-11 में जब योजना को स्वीकृति मिली थी तो उपरोक्त योजना को पूर्ण क्यों नहीं किया गया? और यदि ऐसा नहीं हुआ तो जांच के बाद कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? पुन: उसी योजना स्थल पर योजना को स्वीकृति दिलाते हुए फरजी एमआइएस के तहत लाखों रुपये की निकासी कैसे की गयी? बहरहाल उपरोक्त मामले में निष्पक्षता पूर्वक जांच कराये जाने की आवश्यकता है.
क्या कहते हैं जमीन मालिक
जमीन मालिक मैमूल शेख का कहना है कि उपरोक्त जमीन पर तीन-तीन बार योजना की स्वीकृति करायी गयी. तालाब खुदाई के नाम पर महज खानापूर्ति की गयी है. उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर डीडीसी से जांच कराये जाने की मांग भी की.
क्या कहते हैं बीडीओ
प्रखंड विकास पदाधिकारी संजीव कुमार ने कहा कि मामले की जांच योजना स्थल पर जा कर करेंगे. जांच में गड़बड़ी पायी गयी तो संलिप्त पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
क्या कहते हैं डीडीसी
उप विकास आयुक्त दिलीप कुमार टोप्पो ने कहा कि मामले की शिकायत उन्हें मिली है. स्थल निरीक्षण व पूरे अभिलेखों की जांच के पश्चात कार्रवाई की जायेगी.
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