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कैसी हो हमारी स्थानीय नीति

फोटो संख्या 27- 1932 को आधार मानकर बने स्थानीय नीतिप्रो. जोएल मुर्मूझारखंड में इन दिनों स्थानीय नीति बनाने की मांग तेज हो गयी है और होनी भी चाहिए. मेरा मानना है कि हमारे पूर्वजों ने जंगल-झाड़ को काटकर इस धरती को सींचा है. ईश्वर ने यहां खनिज संपदा का अंबार दिया. इसलिए अंतिम सर्वे 1932 […]

फोटो संख्या 27- 1932 को आधार मानकर बने स्थानीय नीतिप्रो. जोएल मुर्मूझारखंड में इन दिनों स्थानीय नीति बनाने की मांग तेज हो गयी है और होनी भी चाहिए. मेरा मानना है कि हमारे पूर्वजों ने जंगल-झाड़ को काटकर इस धरती को सींचा है. ईश्वर ने यहां खनिज संपदा का अंबार दिया. इसलिए अंतिम सर्वे 1932 को स्थानीय नीति का आधार बनना जरूरी है. झारखंड गठन का मुख्य कारण यहां के मूलवासी एवं शोषित आदिवासी का विकास करना है. इसके लिए उन्हें नौकरी में तृतीय व चतुर्थ वर्गीय पदों पर उनका अधिकार देना होगा. एसपीटी एवं सीएनटी एक्ट को कड़ाई से लागू करना चाहिए. यहां के आदिवासी व गरीब पलायन कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास सिंचाई, शिक्षा एवं रोजगार का साधन नहीं है. अमड़ापाड़ा में कोल माइंस, दुमका के मसानजोर डैम एवं धनबाद के मैथन बांध आदि के निर्माण से यहां पलायन हुआ. सरकार कल कारखाने, खदान एवं बड़े उद्योग के नाम पर रैयतों को उजाड़ रही है. आदिवासी मूलवासी के पलायन को रोकना एवं नौकरी देना सरकार का कर्तव्य है. अगर यहां की मिट्टी भाषा एवं संस्कृति को बचाना है तो यहां के आदिवासी मूलवासियों को डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर आदि बनाना होगा और उसके लिए 1932 ई. को स्थानीयता का आधार बनाना होगा. अभी स्कूल कॉलेज में क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई तक नहीं होती है. इसका कारण है सरकार जान बूझकर विकास नहीं चाहती. राजनीतिक लोग वोट पाने के लिए चुप्पी साधे हैं. सरकार यहां मूलवासी एवं आदिवासी के हित को ध्यान में रखते हुए स्थानीय नीति तय करें ताकि आने वाले दिनों में ऐसा न हो कि झारखंड में बाहरी लोगों को मालिक एवं मूलवासी आदिवासियों को नौकर की भूमिका में आना पड़े. लेखक केकेएम कॉलेज के व्याख्याता हैं.

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