पाकुड़ : जिले के लगभग 25 हजार बीड़ी बनाने वाली महिला मजदूरों की तकदीर राजनीतिक उपेक्षा की वजह से नहीं बदल पायी है. शासन प्रशासन एवं जन प्रतिनिधि भी अल्पसंख्यक बहुल गांवों में बीड़ी बनाने वाली मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी तो दूर उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में भी अपने को सफल साबित नहीं कर पाये हैं. प्रतिदिन बीड़ी बनाने वाली महिला मजदूर हजार से पंद्रह सौ बीड़ी बनाती है और उन्हें इसके एवज में मजदूरी के रूप में एक सौ रुपये दिये जाते हैं.
निकटवर्ती पश्चिम बंगाल में बीड़ी मजदूरों को 150 से 200 रुपये प्रति हजार की दर से मजदूरी दी जाती है लेकिन पाकुड़ के मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रहा है. मजदूरों की मेहनत से बीड़ी उद्योग से जुड़े व्यवसायियों का कारोबार तो फल फूल रहा, लेकिन इस काम में महिला मजदूरों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक हालात नहीं बदले हैं. बीड़ी मजदूर गुलनूर बीबी, आसेफा, मतलुब बीबी, जोहरून आदि दर्जनों ने बताया कि बीड़ी कंपनियों के मुंशी द्वारा बीड़ी की छटाई कर देने के कारण भी मजदूरी काम के एवज में अपेक्षाकृत नहीं मिलती है. उन्होंने कहा कि मुंशियों एवं बीड़ी कंपनियों के निवेशकों द्वारा शोषण किये जाने एवं प्रशासनिक स्तर से कोई कदम नहीं उठाने के कारण भी हमें परेशान होना पड़ रहा है.