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पहले महिलाएं लोकगीत गाकर मांगती थीं वोट

प्रखंड के टोंटी पंचायत अंतर्गत इटके गांव निवासी मौलाना नेजामउद्दीन (91 वर्ष) ने चुनाव को लेकर अपना अनुभव साझा किया.

बारियातू. प्रखंड के टोंटी पंचायत अंतर्गत इटके गांव निवासी मौलाना नेजामउद्दीन (91 वर्ष) ने चुनाव को लेकर अपना अनुभव साझा किया. नेजामउद्दीन बताते हैं कि पहले और अब के चुनाव में काफी अंतर हो गया है. वे आजाद भारत में पहले आम चुनाव 1952 के भी गवाह रहे हैं. उन्होंने 2019 में 17वें आम चुनाव को भी देखा है. वे बताते है कि अब चुनाव लड़ने का तरीका भी बदल गया है. पहले चुनाव में मामूली खर्च होता था. अब समय बदल गया है. चुनाव भी हाइटेक हो गया है. पहले हाथ से तैयार पर्ची को कार्यकर्ता बगैर स्वार्थ कड़ी मेहनत के साथ घर-घर पहुंचाते थे. वोट की अपील करते थे. इससे वोटर भी खुश होते थे. इसके अलावे दीवारों पर रंग से पेंटिंग बनाते थे. वोट के दिन भी शांतिपूर्ण वातावरण में मतदान होता था. वोटर अपने मनपसंद प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह के सामने मुहर लगाते थे. वोटर प्रत्याशियों से प्रचार सामग्री मांगता था. उसे अपने क्षेत्र में ले जाकर अन्य लोगों को दिखाता था. महिलाएं मंडली बनाकर गांव में लोकगीत गाते हुए वोट मांगती थी. पहले प्रत्याशी के मिलने का तरीका सिर्फ डोर-टू-डोर कैंपेन ही हुआ करता था. आज के चुनाव की परिभाषा ही बदल गयी है. प्रत्याशी, पार्टी आदि में भी धर्म व जात-पात की बात होती है. जनता को दिग्भ्रमित कर व लोभ-लालच देकर अपने पक्ष में वोट मांगते की परंपरा हावी हो गयी है. कपड़े का बैनर अतीत का हिस्सा हो चुका है. वॉल पेंटिंग का दौर खत्म हो गया है. बैलेट पेपर अब इवीएम मशीन बन चुका है. चुनाव के दौरान नारे भी मजेदार होते थे. अब वह दौर ही खत्म हो चुका है. उन्होंने तमाम लोगों से हर हाल में लोकतंत्र के इस पर्व में हिस्सेदारी निभाने की अपील की है.

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