जमशेदपुर : स्वच्छता और पर्यावरण के मामले में अगर शहर की मसजिदाें की चर्चा की जाये, ताे जुगसलाई की मसजिद ए मेराज का जिक्र करना जरूरी होगा. वर्षाें पूर्व लगाये गये पौधे अब बड़े छायादार पेड़ बन गये हैं. मसजिद ए मेराज के मतवल्ली और मसजिद प्रबंधन का संचालन करनेवाले मोतिउल्लाह हबीबी बताते हैं कि मसजिद की तामीर से लेकर आज तक लगे हैं.
संचालन और प्रबंधन का जिम्मा भी उन्हीं के पास है. मसजिद की तीसरे तल्ले और गुंबद के साथ-साथ आकर्षक मीनार की तामीर का काम अपने मुकाम पर पहुंच चुका है. यहां गरीब बच्चों को दीनी तालिम भी दी जाती है. तालिम पूरी तरह से नि:शुल्क है. दीन का बहुत बड़ा काम इस मसजिद के जिम्मे है. यहां का वजू खाना अपने आप में स्वच्छ और आरामदेह है.
जुगसलाई में बढ़ती आबादी और नमाजियों की भीड़ को देखते हुए नयी आबादी महतो पाड़ा रोड हिल व्यू एरिया मिल्लत नगर आदि क्षेत्राें के लोगों ने मसजिद की जरूरत पर एकमत होकर जमीन खरीदी. 15 अप्रैल 2003 को पीर ए तरीकत अब्दुल हफीज की उपस्थिति में इदार ए शरिया के नाजिम ए आला मौलाना गुलाम रसूल बलयावी ने संग ए बुनियाद रखी. जिसे आज भव्य मसजिद ए मेराज के रूप में लाेग देखते हैं आैर जानते हैं. शुरुआती दौर में झोपड़ी नुमा टीन-करकट डालकर पांच वक्तों का नमाज शुरू की गयी थी. माैजूदा वक्त मसजिद के पास बड़ी इमारत है. खुबसूरत आंगन है, जिसमें पेड़-पौधे लगाये गये हैं, जो नमाजियों को हर वक्त लुभाते हैं आैर आराम देते हैं.
मसजिद ए मेराज में हाजी मोहम्मद कासिम, मो सरफराज, मो वाहिद व्यवस्था बनाये रखने में अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं. विद्युत आपूर्ति के विकल्प के रूप में मसजिद के पास अपना साउंडलेस जनरेटर है. जुगसलाई के तंग और संकरी गलियों में यह मसजिद नमाजियों को काफी अच्छी लगती है. यहां नमाजी और कमेटी के सदस्य साफ-सफाई स्वच्छता एवं पार्यावरण पर काफी ध्यान देते हैं, जिसके कारण यह ग्रीन मसजिद के नाम से भी जाना जाता है.
नफ्स को नियंत्रित करने का नाम है रमजान का रोजा
रमजान के रोजे को उन इबादतों में शुमार किया जाता है जो दिखावे की दुनिया से पूरी तरह से अलग है. क्योंकि यह तकवा परहेजगारी और इंसान के अंदर खुद पूरी इंद्रियों को अपने वश में रखने का नाम है. रोजा उन इबादतों में से है, जिसे मजहब ए इसलाम में बरतरी हासिल है. इस महीने में रोजा रखने से अल्लाह के बताये हुए एहकमात की पाबंदी होती है. रोजा इबादत के साथ-साथ इनसान के कल्ब और जिस्म के बहुत से हिस्सों को ताकत बख्शता है. अल्लाह ने फरमाया रोजा में तकवा का पैदा किया जाना जरूरी है, सिर्फ भूखे और प्यासे रहने का नाम रोजा नहीं है, बल्कि जिस्म के हर हिस्से को रोजे के बताये हुए उसूलों के तहत कार्य करना चाहिए यानी झूठ बोलना, आखों से खराब चीजें देखना, एक दूसरे के दिलों को चोट पहुंचाना आदि से परहेज करना चाहिए, ताकि रोजा का तकवा बरकरार रहे. रोजा की गरिमा बनाये रखने के लिए इन सब बातों को रोजेदारों को ध्यान रखने की जरूरत है. रोजे की हालत में दूसरों की मदद करना, और अल्लाह के बताये हुए उपदेश और रसूल के सुन्नतों पर अमल करना चाहिए.
मौलाना मेराज फैजी, पेश ए इमाम, मसजिद ए मेराज जुगसलाई