जुस्को श्रमिक यूनियन के संविधान में प्रवक्ता का कोई पद है. न ही किसी भी आमसभा में इस पद के सृजन का कोई प्रस्ताव पारित कर किया गया है. न ही अध्यक्ष या महासचिव को ऐसी नियुक्ति करने का अधिकार है. दरअसल, उक्त दोनों नेताओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं है. जिस तरह कथित प्रवक्ता के जरिये बयान जारी करवा रहे हैं, वैसे ही अपने एजेंटों के माध्यम से कर्मचारियों का भयदोहन भी करते हैं.
विपक्षी नेताओं ने कहा कि इसी कारण कर्मचारियों ने गुप्त मतदान से को-ऑप्शन करवाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया है जिसमें इन लोगों ने मांग की है कि यूनियन के संविधान के धारा (III) के उपधारा (b) के अनुसार किसी गैर कर्मचारी का को-आॅप्शन करना जरूरी नहीं है. तथापि, यदि कोई सदस्य ऐसा प्रस्ताव लाता है तो, पहले आम सभा में गुप्त मतदान से यह तय हो कि किसी गैर कर्मचारी का को-आॅप्शन किया जाय या नहीं, यदि आमसभा यह तय करती है कि को-आॅप्शन नहीं हो तो यह प्रक्रिया यहीं खत्म कर दी जाये. यदि आमसभा यह तय करती है कि को-आॅप्शन हो, तो यूनियऩ के सदस्यों को अपने लोकतांत्रिक अधिकार के तहत अपने पसंद के किसी भी गैर कर्मचारी का नामांकन (नोमिनेशन) करने का अधिकार दिया जाये. नोमिनेशन की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद आम सभा द्वारा यूनियऩ के संविधान की धारा (III) की उपधारा (b)के तहत तीन गैर कर्मचारियों का को-आॅप्शन गुप्त मतदान से किया जाये. विपक्ष ने पूछा है कि क्या ऐसी मांग रखना असंवैधानिक है? तथा कथित प्रवक्ता के जरिये जुस्को कर्मचारियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है.
इधर, वीडी गोपाल कृष्णा ने कहा है कि वेज रिवीजन को देखते हुए वर्ष 2012 में को-ऑप्शन इस कारण कराया गया था क्योंकि वे टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष थे. वे तब आम आदमी नहीं थे. अत- आम आदमी का को-ऑप्शन करने की बात गलत है.