जमशेदपुर: राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई पदक जीत चुके पूर्व जूनियर नेशनल चैंपियन बॉक्सर रामदास हांसदा इन दिनों जिंदगी रूपी ‘बॉक्सिंग रिंग’ में फाइटिंग कर रहे हैं. सुबह से शाम तक ऑटो रिक्शा पर बैठे जीवन संघर्ष के दांव-पेंच आजमा रहे हैं. अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए वे आजकल शहर की सड़कों पर ऑटो रिक्शा चला रहे हैं.
स्वर्ण पदक जीत सनसनी मचायी
28 वर्षाय रामदास ने वर्ष 2002 में सिक्किम की राजधानी गंगटोक में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में लाइट फ्लाई वेट (48 किग्रा वर्ग) में स्वर्ण पदक जीत कर सनसनी मचा दी थी. इसके अलावा वे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी दो पदक, एक रजत और एक कांस्य, तथा राष्ट्रीय बॉक्सिंग मुकाबलों में आधा दर्जन से अधिक पदक जीत चुके हैं.
2005 में पुलिस बहाली में छंटे: रामदास हांसदा बताते हैं कि वे वर्ष 2004 में बॉक्सिंग को अलविदा कह चुके हैं. वर्ष 2005 में झारखंड पुलिस में बहाली का प्रयास किया था, पर उन्हें कम ऊंचाई वाला बता कर छांट दिया गया. अब वे हताशा में जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. मजबूरी में ऑटो चला कर परिवार की गाड़ी खींच रहे हैं. रामदास अपनी मां, पत्नी, दो बच्चों और छोटे भाई के साथ यहां बागबेड़ा के एक किराये के मकान में रहते हैं.
सरकार खिलाड़ियों की मदद करे: रामदास
रामदास सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार को खिलाड़ियों की मदद करनी चाहिए. उन्हें नौकरियों में प्राथमिकता मिलनी चाहिए. कोई खिलाड़ी कठिन परिश्रम कर मेडल जीतता है, उससे राज्य व देश का मान बढ़ता है. खिलाड़ियों को रोजी-रोजगार व प्रोत्साहन मिलना चाहिए, अन्यथा खिलाड़ी खेल से परहेज करेंगे. झारखंड के गांवों में अच्छे खिलाड़ी मोती की तरह बिखरे पड़े हैं, उन्हें आगे बढ़ाने की जरूरत है.