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दीपावली पर शुभ मुहूर्त में करें गणेश-लक्ष्मी का पूजन

दीपावली पर शुभ मुहूर्त में करें गणेश-लक्ष्मी का पूजनजमशेदपुर : दीपावली बुधवार, 11 नवंबर को है. इस दिन वास्तव में कई पर्वों का गुच्छ सा बनता है, जो एक ही दिन मनाया जाता है. ये सभी पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को ही मनाये जाते हैं, जिसमें दीपावली, लक्ष्मी पूजन, गणपति पूजन एवं कुबेर […]

दीपावली पर शुभ मुहूर्त में करें गणेश-लक्ष्मी का पूजनजमशेदपुर : दीपावली बुधवार, 11 नवंबर को है. इस दिन वास्तव में कई पर्वों का गुच्छ सा बनता है, जो एक ही दिन मनाया जाता है. ये सभी पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को ही मनाये जाते हैं, जिसमें दीपावली, लक्ष्मी पूजन, गणपति पूजन एवं कुबेर पूजन शामिल हैं. किन्तु दीपावली में देवों एवं पितृ पूजन का भी प्रावधान है. परंपरागत रूप से इस दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर देव, पितृ एवं अन्य पूज्य जनों की अर्चना करनी चाहिए एवं उन्हें दूध, दही, घृत आदि से श्राद्ध करना चाहिए. इसके बाद अपराह्न में अपने घर-मकान को स्वच्छ एवं सुशोभित कर प्रदोष काल में दीपावली सजा कर मित्रों एवं स्वजनों सहित आधी रात के समय इन दृश्यों का अवलोकन करना चाहिए. रात्रि के शेष भाग में सूप, डमरू आदि को वेग से बजा कर अलक्ष्मी (दरिद्र) निष्कासन किया जाता है. दीपावली में जलते दीयों की अवलि (पंक्ति) संपन्नता का सूचक मानी जाती है. पुराणों में चर्चा आती है कि माता लक्ष्मी इस रात्रि लोगों के मकानों में विचरण करती हैं. इसलिए घरों को सर्व प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध एवं सुशोभित कर सुशोभित कर दीपावली सजाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं एवं उन्हीं स्थानों में निवास करती हैं. इसके अलावा वर्षा काल में घरों में लगे मकड़ी के जाले, धूल आदि को दूर कर देने से वैसे भी कई आधि-व्याधियां दूर हो जाती हैं.इस दिन गृहस्थों को दीप मालिका से पूर्व माता लक्ष्मी, भगवान श्री गणेश एवं कुबेर की पूजा – अर्चना अवश्य करनी चाहिए. इस दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें. इसके पश्चात सायंकाल में पुन: स्नानादि से निवृत्त होकर दीप मालिका, दीप वृक्ष आदि बना कर कोषागार अथवा किसी शुद्ध, सुंदर एवं सुशोभित, शांति दायक स्थान पर वेदी, चौकी अथवा पाटे पर अक्षतादि से अष्टदल बना कर उस पर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश की प्रतिमा अथवा तस्वीर को अलग-अलग स्थापित कर तीनों का यथा विधि पूजन करें. ऐसा करने से धन-धान्य एवं संपन्नता की प्राप्ति होती है.पूजन के लिए आवश्यक सामग्रीलक्ष्मी, गणपति की प्रतिमा अथवा तस्वीर, चौकी या पाटा, आसन के लिए कपड़ा, वस्त्र, सिंदूर,रोली, मौली, घिसा चंदन, कुमकुम, माला, इत्र, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, कमल पुष्प, आक के सफेद फूल, दूर्वा, यज्ञोपवीत, अक्षत, धूप, घृत, दूध, दही, मधु, गुड़, दीपक (घृत एवं तिल तेल युक्त दो दीपक), खील, बताशे, मिठाई (चीनी वाली जीवों के आकार वाली), शंख (दक्षिणावर्त), श्री यंत्र, कुबेर यंत्र (संभव हो तो), घंटी, कलश, गंगाजल, नैवेद्य, नारियल (एकाक्षी हो तो अच्छा).गृहस्थ घर में कैसे करें पूजनदीपावली पर पूजन की विधि तो बहुत लंबी है, जिसे सामान्य गृहस्थ व्यावहारिक कारणों से नहीं अपना सकते. ऐसे में गृहस्थों द्वारा अपने घरों में स्वयं पूजा-अर्चना की परंपरा विकसित हुई है. इसके लिए खर के किसी साफ-सुथरे स्थान पर वेदी, चौकी या पाटा के ऊपर आसन बिछा कर उस पर अक्षत से अष्टदल बनायें तथा माता लक्ष्मी एवं भगवान गणेश की प्रतिमाओं को उस पर स्थापित करें. इसमें ध्यान रखें कि अपनी बायीं तरफ माता लक्ष्मी की प्रतिमा तथा अपने दायें हाथ की ओर भगवान गणेश की प्रतिमा (लक्ष्मी जी के बायीं ओर गणेश जी को) स्थापित करें. प्रतिमा की बायीं तरफ कलश, धूपदानी, तेल के दीपक को एवं दाहिनी तरफ घी के तीपक, शंख आदि अन्य सामग्रियों को रखें. पूजा में पहले भगवान गणेश की और फिर माता लक्ष्मी एवं कुबेर की सविधि पूजा करनी चाहिए. इसके लिए हाथ में अक्षत लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें एवं तीन बार जल अर्पित करें. इसके पश्चात उनके समक्ष पंचामृत, वस्त्र (न हो तो मौली) अर्पित करें. पुन: रोली, चंदन का टीका अर्पित करें तथा उनके समक्ष सफेद आक का फूल, शमी पत्र, दूर्वा एवं सिंदूर अर्पित करें. फिर धूप दिखायें एवं नैवेद्य अर्पित कर पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि अर्पित करें. फिर ऋतुफल एवं अन्त में नारियल अर्पित कर दक्षिणा के रूप में कछ द्रव्य अर्पत ‘ॐ गं गणपतये नम:’मंत्र का कम से कम एक माला जाप कर प्रणाम निवेदित कर भगवान गणेश की आरती करें.माता लक्ष्मी की पूजा के लिए भी श्री गणेश के पूजन वाली सारी विधियां दुहरायें, सिर्फ इसमें ध्यान रखें कि आक के फूल की जगह माता लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित किया जायेगा, नहीं मिलने पर कोई भी पीला या लाल फूल चढ़ायें. इसके बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नम:’ मंत्र के साथ उनकी प्रार्थ ना एवं उनकी आरती करें. वैसे पूजा की यह विधि अपनाने के अलावा गृहस्थ अपनी कुल परंपरा के अनुसार भी पूजा कर सकते हैं.पूजन का मुहूर्तप्रदोष काल : संध्या 4:58 से रात्रि 7:35 बजे तकगृहस्थों के लिए पूजन का समय : संध्या 5:17 से 7:15 बजे के लिएव्यवसायियों के लिए पूजन का समयसिंह लग्न में पूजन : रात्रि 11:44 से 1:56 बजे तकचौघड़िया मुहूर्तलाभ की चौघड़िया : प्रात: 5:57 से 7:20 बजे तक एवं रात्रि 2:45 से 4:20 बजे तकअमृत की चौघड़िया : प्रात: 7:21 से 8:43 बजे तक एवं रात्रि 8:16 से 9:51 बजे तकशुभ की चौघड़िया : प्रात: 10:06 से 11:28 बजे तक एवं रात्रि 6:39 से 8:15 बजे तकचर की चौघड़िया : दिवा 2:15 से 3:35 बजे तक एवं रात्रि 9:52 से 11:29 बजे तक

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