जमशेदपुर: मनुष्य को आरंभ से ही आत्म ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए. लोगों की यह धारणा बिल्कुल गलत है कि आत्म ज्ञान सिर्फ बुजुर्गो एवं अवकाश प्राप्त लोगों के लिए ही है.
उक्त बातें आत्मीय वैभव विकास केंद्र के विज्ञान भवन में ‘जीवन जीने के व्यापक मार्गदर्शन’ पर चल रहे ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने अपने प्रवचन के दौरान कहीं. उन्होंने कहा कि विषयों के ज्ञान एवं अद्भुत ऐश्वर्य प्राप्त कर भी हम सुखी एवं संतुष्ट जीवन नहीं जी सकते. युद्ध जैसे भयंकर कर्म के बीच भगवान श्रीकृष्ण ने अजरुन को गीता का ज्ञान दिया था, जो उपनिषदों का सार है. उन्होंने बताया कि सारी शक्तियों एवं शौर्य के बावजूद अजरुन मोह का शिकार हो गये थे, तब गीता के ज्ञान ने ही उन्हें मन की स्थिरता प्रदान की. इसलिए स्वामी जी ने कर्मक्षेत्र में प्रवेश करने से पहले ही अध्यात्म ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए.
भगवद्गीता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मानव मन की कमजोरियों का विशेषण कर उन्हें जीतने का उपाय बताती है, जिससे मनुष्य धीर, वीर, उदात्त एवं प्रसन्नचित्त हो पाता है, जो मानवता के गुण हैं. गीता का ज्ञान भौतिक शास्त्र-रसायन शास्त्र की तरह संपूर्ण मानवता के लिए है, उसे सिर्फ हिंदुओं का ग्रंथ मानना नादानी है.
अध्यात्म मार्ग की सबसे बड़ी कठिनाई हमारी इंद्रियों का बहिमरुखी होना है. इन्हें थोड़ी देर के लिए भी अंतमरुखी करना कठिन है. मन को अंतमरुखी करने से ही भेद बुद्धि जायेगी, जिसके रहते हमें परम सत्य का ज्ञान नहीं हो सकता. स्वामी जी कल की चर्चा में मन को अंतमरुखी बनाने के उपायों की चर्चा करेंगे.