जमशेदपुर: जमशेदपुर एक शहर ही नहीं, विशिष्ट संस्कृति का भी नाम है, जो यहां निवास कर रहे लोगों में रच बस जाता है, उनकी पहचान बन जाता है. यहां से बाहर जाने वाले लोगों को उनके संस्कारों से सहज ही पहचाना जा सकता है. यही इस शहर की विशेषता है, जिसमें ढला व्यक्ति यहां से दूर जाने के बाद भी खुद को इधर आकर्षित होने से रोक नहीं पाता. टाटा स्टील की नौकरी से 1995 में अवकाश ग्रहण के बाद पुणो में बस गये कंपनी के पूर्व पदाधिकारी सदानंद बापट तथा उनकी पत्नी श्रीमती शांता बापट इस बात के जीता-जागता उदाहरण हैं. श्री एवं श्रीमती बापट नगर के महाराष्ट्र हितकारी मंडल द्वारा आयोजित गणोशोत्सव में भाग लेने 18 वर्ष बाद जमशेदपुर लौटे हैं. प्रस्तुत है बापट दंपती के साथ उनकी यादों में बसे जमशेदपुर के संबंध में हुई लंबी बातचीत के मुख्य अंश :
प्रश्न : आप वर्षों बाद जमशेदपुर आये हैं, आपको कैसा लगा आज का जमशेदपुर?
सदानंद बापट : विगत 18 वर्षो में जमशेदपुर का काफी विकास हुआ है. लेकिन औद्योगिक और भौतिक विकास के बावजूद जमशेदपुर का सामाजिक जीवन अभी भी देश के अन्य कई शहरों से बेहतर है. यहां के सामाजिक जीवन में कुछ ऐसा आकर्षण है, जो आज भी आकर्षित करता है. मेरा वश चले तो मैं फिर से यहीं आकर बस जाऊं.
प्रश्न : ऐसा क्या है जमशेदपुर के सामाजिक जीवन में?
सदानंद बापट : तीन पीढ़ियों से मेरा परिवार यहां है. मेरा तो जन्म जमशेदपुर में हुआ, यहीं पला-बढ़ा, केएमपीएम स्कूल से पढ़ाई की. उच्च शिक्षा के लिए कुछ समय बनारस, पुणो आदि जाना पड़ा, लेकिन फिर टिस्को (अब टाटा स्टील) कर्मी के रूप में यहीं आ गया. वर्ष 1995 में अवकाश ग्रहण करने तक जमशेदपुर में ही रहा. इसके कारण तो शहर से लगाव है ही, शहर के सामाजिक जीवन में जो अपनत्व है, वह देश के कम शहरों में मिलेगा. यहां का वर्क कल्चर तो इसका कारण है ही, यहां के लोगों की विविधता में एकता का भाव भी इसका मुख्य कारण है, जो और कहीं इस रूप में नहीं मिलेगा.
प्रश्न : पुणे में जमशेदपुर की कैसे याद आती है?
सदानंद बापट : अवकाश ग्रहण के बाद पुणो में सेटल हो गया हूं, लेकिन वहां भी मैं जमशेदपुरियन ही हूं. मैं ही क्यों, जमशेदपुर से संबद्ध रहे सैकड़ों लोग वहां हैं, जिन्होंने वहां भी एक मिनी जमशेदपुर बसा रखा है. वे साल में एक बार 3 मार्च के आसपास गेट टुगेदर करते हैं जिसमें सभी अपने अनुभव बांटते हैं, जमशेदपुर में बिताये दिनों को याद करते हैं. इस आयोजन में ऐसे लोगों में से बुजुर्गो को सम्मानित भी किया जाता है. इसमें गैर महाराष्ट्रियन लोग भी शामिल हैं, जो किसी तरह पुणो में सेटल कर गये हैं. इसके अलावा पुणो में ब्याही गयीं जमशेदपुर की लड़कियां भी इसमें काफी संख्या में उत्साह पूर्वक शामिल होकर अपने शहर की यादें ताजा करती हैं.