लेकिन वक्त बदलने के साथ धीरे-धीरे ये मैदान छोटे होते गये और अब उनका अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है. मैदानों पर अवैध कब्जा हो गया है. कहीं पार्किग स्टैंड, तो कहीं- कहीं मैदानों में कहीं गैराज और खटाल खुल गये हैं. मैदान में खेलने वाले बच्चों का बचपन जहां अपार्टमेंट के एक कमरे तक सिमट कर रह गया है, उनके खेल व मनोरंजन के तरीके बदल गये हैं, वहीं निरंतर छोटे होते जा रहे मैदान को लेकर कहीं से कोई आवाज नहीं उठ रही है.
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शहर से गायब हो रहे हैं खेल के मैदान
जमशेदपुर: पहले खेल के मैदान इस शहर की पहचान हुआ करते थे. हर मुहल्ले से लेकर कॉलोनी तक में एक मैदान था. उसमें जहां बच्चे सुबह-शाम खेला करते थे, वहीं छोटी-बड़ी मीटिंग से लेकर बड़ी राजनीतिक जनसभाएं तक हुआ करती थीं. पर्व-त्योहार के अवसर पर मैदान की रौनक देखते बनती थी. लेकिन वक्त बदलने के […]
जमशेदपुर: पहले खेल के मैदान इस शहर की पहचान हुआ करते थे. हर मुहल्ले से लेकर कॉलोनी तक में एक मैदान था. उसमें जहां बच्चे सुबह-शाम खेला करते थे, वहीं छोटी-बड़ी मीटिंग से लेकर बड़ी राजनीतिक जनसभाएं तक हुआ करती थीं. पर्व-त्योहार के अवसर पर मैदान की रौनक देखते बनती थी.
परंपरागत खेलों से दूर हुए बच्चे
बच्चे परंपरागत खेलों से दूर हो गये हैं. पहले बच्चे लुका- छिपी, गिल्ली- डंडा, रस्सी कूद, क्रिकेट, फुटबॉल, पतंग उड़ाने जैसे पारंपरिक खेलों से अपना मन बहलाते थे, वहीं अब बच्चे इन खेलों से दूर हो गये हैं. वे वीडियो गेम से लेकर इंडोर गेम में ही अपना अधिकांश समय बिता रहे हैं. इससे उनका मानसिक विकास जरूर हो रहा है, लेकिन शारीरिक विकास ठीक ढंग से नहीं हो रहा है. वे समय से पहले कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.
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