जमशेदपुर : 1971 की जंग में एएमसी (आर्मी मेडिकल कॉर्प) में भारत से अधिक पाकिस्तान के फाैजियाें की मरहम पट्टी करने वाले नील कमल महताे ने बताया कि पाकिस्तान पर कब्जा सिर्फ एक रात की बात थी, हमारी फाैज लाहाैर से महज आठ किलाेमीटर पीछे थी. उसी वक्त पूर्वी पाकिस्तान से खबर आयी कि भारतीय फाैज के सामने दुश्मन ने घुटने टेंक दिये हैं. सीज फायर का एलान हाे गया.
सभी लाेग मन मार कर रह गये. सिर्फ एक रात जंग आैर लंबी खींच जाती ताे आज पाकिस्तान का नामाे-निशान दुनिया की धरती से मिट गया हाेता. सिदगाेड़ा शिव सिंह बगान में रहनेवाले एनके महताे ने प्रभात खबर से जंग के मैदान की बातें की, उन्हाेंने एक-एक लम्हे आैर एक-एक दिन के वाक्या काे शेयर किया.
एएमसी अॉफिसर एनके सिंह ने बताया कि चाइना जंग के बाद 1965 में वे दुर्गापूजा देखने के लिए काेलकाता गये हुए थे. गाेखला राेड में भारी भीड़ जुटी हुई थी. माइक से कुछ उदघाेषणा भी की जा रही थी. उन्हाेंने पूछा ताे मालूम चला कि सेना में बहाली हाे रही है. वे भी लाइन में लग गये. उनकी जब बारी आयी ताे उन्हें शामिल कर लिया गया, मेडिकल के बाद उन्हें 11 सप्ताह की ट्रेनिंग के लिए लखनऊ भेजा गया. ट्रेनिंग का समय इतना कठिन था कि रात काे भी मिलिट्री बूट उतारने की फुर्सत नहीं मिलती थी. इसके बाद उन्हें फिराेजपुर डेरा बाबा नानक पाेस्ट पर तैनात कर दिया गया.
पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के हिस्से में पहले जंग छिड़ गयी थी, इसकाे ध्यान में रखते हुए उनकी 7 डिवीजन, जिसमें करीब 30 हजार फाैजी थे सभी काे खेमकरण सेक्टर में मूवमेंट का आदेश मिल गया. खेमकरण के आरआइटी पट्टी सेक्टर में पहुंच कर उन्हाेंने 45 बेड का अस्पताल आैर बंकर का निर्माण कर लिया. 3 दिसंबर की शाम काे जब वे खाना खाने के लिए जाने वाले थे उसी वक्त सीटियां बजने लगी, सायरन बजा आैर जंग का एलान हाे गया.
वे लाेग बंकराें में कैद हाे गये. खेमकरण का एरिया दुश्मन के काफी करीब था, उनकी हर मूवमेंट पर शेलिंग हाेती थी. पहले 2-3 दिन काफी मुश्किल में गुजरे, लेकिन 7-8 दिसंबर काे भारतीय फाैज के गाेरखा रेजीमेंट ने बड़ा हमला किया, इससे पाकिस्तान काे भारी नुकसान हुआ. उनकी फाैज ने फिर पलट कर नहीं देखा. घायल पाकिस्तानी फाैजियाें का आना जारी रहा. उनसे पूछा जाता था कि क्याें लड़ रहे हाे ताे कहते थे कि ऊपर से अॉर्डर है, लाैट कर नहीं आना है. पीछे लाैटेंगे ताे पाकिस्तानी अॉफिसर मार देंगे. घायल पाकिस्तानियाें का उपचार कर उन्हें अमृतसर अस्पताल भेजदिया जाता था, जबकि भारतीय सेना के जवानाें काे रात के अंधेरे में 70 किलाेमीटर का सफर तय कर जालंधर भेजा जाता था.
जंग का भारतीय सेना में काफी जुनून था. बना हुआ खाना भी नहीं खा पाते थे. दूर बंकर से खानेे के लिए इशारा किया जाता था, लेकिन फायरिंग के बीच वहां तक पहुंचना संभव नहीं था.
सच ताे यह भी है कि भूख भी नहीं लगती थी. जंग का नशा हाे गया था, हमारी फाैज काफी आगे बढ़ गयी थी, लेकिन एएमसी ने वहां स्थायी अस्पताल बना दिया था, इसलिए वे वहां रुके रहे. 65 की जंग में हमने काफी गलतियां की, उससे सीखा, जिसका लाभ 71 में मिला. अब पाकिस्तान काे तय करना है, जंग हाे या नहीं. जंग हुई ताे पाकिस्तान का नामाेनिशान मिट जायेगा.