संजय सागर
बड़कागांव : झारखंड के कोने-कोने से हजारों पारा शिक्षक राजधानी रांची में शनिवार को आंदोलन कर रहे हैं. स्थायीकरण और वेतन विसंगति दूर करने संबंधी अपनी मांगों के समर्थन में ये पारा शिक्षक वर्ष 2007 से हर वर्ष रांची आते हैं. आंदोलन करने. अपनी मांगें मनवाने. लेकिन, 11 साल बाद भी उनकी मांगें नहीं मानी गयीं. आंदोलन को कुचलने के लिए हुई पुलिसिया कार्रवाई मेंएकशिक्षक की मौत हो गयी. इन पारा शिक्षकों ने कभी धूप में पसीने से तर-ब-तर होकर, तो कभी बरसात में भींगकर आंदोलन किया. कभी उनकी दिवाली और छठ घर से दूर रांची में मनी, तो कभी उन्होंने अपने खून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखा.
इतना सब होने के बावजूद पारा टीचर्स के हिस्से सिर्फ आश्वासन ही आया. इतने दिनों में जितनी भी सरकारें आयीं, सबने स्थायीकरने का आश्वासन दिया, लेकिन किसी ने अपने आश्वासन पर अमल नहीं किया. यही वजह है कि हर साल हजारों पारा शिक्षक बच्चों को पढ़ाने का अपना मूल काम छोड़कर रांची में आंदोलन के लिए जमा हो जाते हैं.
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पारा शिक्षकों के आंदोलन का इतिहास एक दशक से भी ज्यादा पुराना है. राज्य के 24 जिलों के हर प्रखंड और हर गांव के स्कूल में कार्यरत पारा शिक्षक आंदोलन में शामिल होता है. बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य में जब भी चुनाव हुए हैं, पारा शिक्षकोंको स्थायी करने समेत समान काम समान वेतन देने का मामला चुनावी मुद्दा बना. दलों ने आश्वासन दिया, लेकिन उसे पूरा नहीं किया.
यह तो सभी मानते हैं कि झारखंड में पारा शिक्षकहीशिक्षा व्यवस्था की रीढ़ हैं. लेकिन उनकी सहूलियत के बारे मेंकोईविचार नहीं करता. पारा शिक्षकों का चयन वर्ष 2000 में ग्राम शिक्षा अभियान के तहत हुआ था. शिक्षकों के चयन का अनुमोदनप्रखंड विकास पदाधिकारी की अध्यक्षता में प्रखंड शिक्षा समिति ने किया. जिला शिक्षा समिति ने चयन को स्वीकृति दी और उसके बाद उपायुक्त की अध्यक्षता में बनी समिति ने शिक्षकों की नियुक्ति को मंजूरी दी.
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ग्राम शिक्षा समिति ने करीब एक लाख पारा शिक्षकों का चयन किया. 1000 रुपये के मानदेय पर. कुछ दिनों बाद इन पारा शिक्षकों ने वेतनमान बढ़ाने के लिए आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया. वर्ष 2007 के राज्यव्यापी आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया. इसमें पारा शिक्षक मुनेश्वर सिंह की मृत्यु हो गयी.
इसके बाद सरकार ने आश्वासन की घुट्टी पिलाकर आंदोलन को शांत करा दिया. सरकार ने पारा शिक्षकों से उनकी सेवा स्थायी करने का वादा किया. आंदोलन समाप्त हो जाने के बाद आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पारा शिक्षकों को कई आरोपों में बर्खास्त कर दिया. बाद में वे आरोप झूठे साबित हुए और सभी को फिर से बहाल करना पड़ा. इस दौरान जब भी पारा शिक्षकों ने अपने हक की आवाज बुलंद की, उन्हें कभी 5, तो कभी 10 फीसदी की वेतनवृद्धि का लॉलीपॉप थमा दिया गया.