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:4:::: 1971 के युद्ध में योगदान रहा है बंधन का

:4:::: 1971 के युद्ध में योगदान रहा है बंधन का रात के अंधेरे में सैनिकों का रोटी पहुंचाते थे : बंधन6 गुम 1 में बंधव सावप्रतिनिधि, गुमलागुमला शहर के मेन रोड में बंधन साव रहते हैं. 1971 के युद्ध के वे साक्षी हैं. पेशे से ट्रक चालक रह चुके बंधन कि उम्र अब 81 साल […]

:4:::: 1971 के युद्ध में योगदान रहा है बंधन का रात के अंधेरे में सैनिकों का रोटी पहुंचाते थे : बंधन6 गुम 1 में बंधव सावप्रतिनिधि, गुमलागुमला शहर के मेन रोड में बंधन साव रहते हैं. 1971 के युद्ध के वे साक्षी हैं. पेशे से ट्रक चालक रह चुके बंधन कि उम्र अब 81 साल हो गयी है. अखबार में 1971 की युद्ध व अलबर्ट एक्का की शहादत की कहानी पढ़ी. उन्होंने बताया कि युद्ध में वे हथियार नहीं चलाये. लेकिन पाकिस्तानी दुश्मनों से लड़ रहे भारतीय सेना को उन्होंने रोटी खिलायी है. बंधन ने कहा : 1971 में वह ट्रक चलाता था. गुमला से बीआरडब्ल्यू 2228 ट्रक में लकड़ी लाद कर रांची-पुरुलिया गये थे. लौटने के क्रम में नामकुम के समीप सेना के जवानों ने उसे पकड़ लिया. उस समय गुमला के अन्य दो ट्रक चालक नान्हू सिंह व तुलसी सिंह थे. ट्रक पकड़ने के बाद उसमें केरोसिन लादा गया. रांची से गुवाहाटी ले गये. गुवाहाटी से पाकिस्तान के जमालपुर बॉर्डर स्थित भारत के तुरा जिला ले गये. जहां उन्हें रखा गया. नवंबर माह का अंतिम सप्ताह था. तुरा में सेना का कैंप था. जहां दिनभर सभी लोग रोटी बनाते थे. इसमें बंधन भी सहयोग करता था. बंधन ने कहा : रात के अंधेरे में पूरे ट्रक में रोटी भर कर उसे सैनिकों तक पहुंचाते थे. ताकि सैनिक भूखे न रहें और दुश्मनों से लड़ने में उन्हें दिक्कत न हो. ट्रक को रात में बिना लाइट के चलाते थे. दुश्मनों से बचते हुए बड़ी सावधानी से सैनिकों तक रोटी पहुंचाया जाता था. जमीन में छिप कर जान बचायीबंधन ने कहा : तीन दिसंबर की घटना आज भी याद है. गोली चलने लगी तो जमीन में बनाये गये गड्ढे में घूस कर जान बचायी थी. जब युद्ध थमा तो चार दिसंबर को पता चला कि गुमला का एक सैनिक शहीद हो गया. उसका नाम अलबर्ट एक्का था. उसके बाद मैं डर गया. जिस समय मैं युद्ध स्थल गया था. समय जोश था. पर वहां का दृश्य देख कर डर गया था. ट्रक खराब होने पर वहां भागागोलियां चलते मैंने अपनी आंखों से देखी. काफी डर लगता था. मैंने वहां से निकलने की योजना बनायी. ट्रक में खराबी होने का बहाना किया. इसके बाद सेना के लोगों ने उन्हें रिलीज कर दिया. किसी प्रकार तुरा से किशनगंज तक पहुंचा. वहां एक व्यक्ति से सहयोग लेकर ट्रक में तेल भरवाया, फिर गुमला आया. जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में गुमला पहुंचे थे. बंधन ने कहा : पहली बार मैंने ऐसा खौफनाक दृश्य देखा था. दिन रात 24 घंटा गोली चलती थी. आज भी घटना को याद कर सिहर जाते हैं.

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