राकेश सिन्हा, गिरिडीह : देश में विख्यात गिरिडीह के लौह उद्योग पर लॉकडाउन का खासा असर पड़ा है. अर्थव्यवस्था चरमरा जाने से लौह फैक्ट्रियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. बता दें कि गिरिडीह का श्री बीर टीएमटी, मोंगिया टीएमटी, सलूजा टीएमटी, टफकन टीएमटी समेत कई लौह उत्पाद देश के अलग-अलग राज्यों में भेजे जाते हैं. गुणवत्ता के कारण गिरिडीह के टीएमटी बार की देश में अलग पहचान है. गिरिडीह की लौह फैक्ट्रियों में टीएमटी बार के अलावा स्पंज आयरन, पिग आयरन, बिल्लेट, एंगल आदि भी तैयार किये जाते हैं. लॉकडाउन में सभी लौह फैक्ट्रियां बंद है. फैक्ट्रियाें के बंद रहने से संचालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. संचालकों को कहना है कि पूर्व से ही बाजार में काफी पैसा फंसा है. इसके बाद यदि फैक्ट्रियां चालू की जाती है, तो भी बिक्री मूल्य पर असर पड़ेगा. इसका भी खमियाजा अधिकांश लौह उद्योगों के संचालकों को उठाना पड़ेगा.
वर्तमान में जो स्थिति बनी हुई है, उससे लगभग 25 से 30 प्रतिशत फैक्ट्रियां एनपीए की कगार पर पहुंच चुकी है. इधर उद्यमियाें काे कहना है कि यदि सरकार ने राहत पैकेज नहीं दिया, तो कई फैक्टरियां बंदी की कगार पर पहुंच सकती हैं.बिजनेस चेन टूट चुका है, बाजार भी नहीं सच तो यह है कि लॉकडाउन के बाद कई फैक्ट्रियां बंद हो गयी है. हालांकि पिछले दिनों केंद्र सरकार के निर्देश के आलोक में फैक्ट्रियों को खोलने का आदेश दिया गया है. आदेश के बाद भी कई फैक्ट्रियां अभी भी बंद हैं. बिजनेस चेन टूट जाने और बाजार उपलब्ध नहीं रहने के कारण लौह उत्पाद की मांग ही वर्तमान में नहीं है. फैक्ट्रियों के संचालकों का कहना है कि उत्पाद बना कर ही क्या करेंगे, न ही बाजार उपलब्ध है और न ही कोई खरीदार. सरकार ने फैक्ट्रियों को चालू करने की अनुमति तो दी है, पर बेचने वाले दुकानदारों को दुकान खोलने की अनुमति नहीं मिली है. इस कारण बाजार के अभाव में छड़ समेत अन्य उत्पाद बनाने से भी कोई फायदा नहीं होगा. अतिबीर हाइटेक प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर संदीप सरावगी कहते हैं कि बिजनेस चेन टूटा हुआ है.
साथ ही लॉकडाउन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में फैक्ट्रियों को चालू नहीं किया जा सकता है. पहले से ही काफी नुकसान में हैं. चालू होने से नुकसान और बढ़ेगा. यदि फैक्ट्री में कोई पार्ट्स टूट गया, तो फिर उसे मंगाया नहीं जा सकेगा. मोंगिया स्टील प्राइवेट लिमिटेड के सीएमडी गुणवंत सिंह का कहना है कि लौह उत्पाद बनाने से फायदा क्या है, जब खरीदार ही नहीं है. पूरी स्थिति संभलने के बाद ही फैक्ट्रियों को चालू करना उचित रहेगा. वर्तमान में भी लगभग 700-800 टन छड़ बन कर तैयार है. इसके भी खरीदार नहीं हैं. यदि छड़ बनाकर रखा भी जाता है, तो उसमें जंग लगने से उसके बिक्री पर भी असर पड़ेगा. छड़ में हवा लगने से उसका रंग लाल हो जाता है. लोग इस तरह की छड़ें खरीदना नहीं चाहते. बॉक्स- राहत पैकेज नहीं मिला, तो बंद हो जायेगी 50 प्रतिशत फैक्ट्रियां :लॉकडाउन के दौरान 20 अप्रैल से फैक्ट्रियों को चालू करने की अनुमति के बाद भी इक्का-दुक्का छोड़कर सभी फैक्ट्रियां बंद हैं.
बंद रहने के बाद भी इन फैक्ट्रियों का खर्च का मीटर चालू है और आमदनी के सभी रास्ते बंद हैं. संचालकों का कहना है कि फैक्ट्री बंद रहने के बाद भी उन्हें बिजली शुल्क की मिनिमम गारंटी, बैंक का ब्याज दर, मजदूरों-कर्मियों का वेतन, मेनटेनेंस आदि पर खर्च उठाना पड़ रहा है. अतिबीर हाइटेक प्राइवेट लिमिटेड लगभग चार करोड़ रुपये प्रति माह, सलूजा स्टील प्राइवेट लिमिटेड लगभग 50 लाख रुपये प्रति माह और मोंगिया स्टील प्राइवेट लिमिटेड लगभग डेढ़ करोड़ रुपये प्रति माह का बैंक ब्याज भुगतान करता है. इसके अलावा डीवीसी का बिजली शुल्क के रूप में मिनिमम गारंटी का भुगतान भी प्रत्येक माह दिया जाना है. इस मद में अतिबीर हाईटेक प्राइवेट लिमिटेड प्रति माह छह करोड़ रुपये, मोंगिया स्टील प्राइवेट लिमिटेड तीन करोड़ रुपये और सलूजा स्टील प्राइवेट लिमिटेड डेढ़ करोड़ रुपये का भुगतान प्रति माह डीवीसी को करता है.
क्या कहना है उद्योगपतियों काचित्र परिचय : 35. संदीप सरावगी, अतिबीर हाईटेक प्राइवेट लिमिटेड वर्तमान में फैक्ट्री चालू करने की परिस्थिति नहीं है. बिजनेस चैन टूट जाने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. फैक्ट्रियों के बंद रहने के बावजूद प्रत्येक माह लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, जबकि कहीं से कोई आमदनी नहीं हो रही. यदि सरकार ने राहत पैकेज नहीं दिया, तो अधिकांश फैक्ट्रियां बंद हो जायेगी. बैंक ने ब्याज दर में राहत देने की बात कही है. परंतु इससे कोई खास फायदा व्यवसायियों को नहीं होगा. बाद में यह राशि चुकानी ही पड़ेगी. इसी प्रकार डीवीसी मिनिमम गारंटी की राशि की मांग कर रहा है. सरकार को इस पर पहल करने की जरूरत है. संदीप सरावगी, अतिबीर हाईटेक प्राइवेट लिमिटेडचित्र परिचय : 37. गुणवंत सिंह, मोंगिया स्टील प्राइवेट लिमिटेड बाजार नहीं है और न ही कोई मांग, तो ऐसे में फैक्ट्री चालू करने का कोई फायदा नहीं. लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियों के संचालक को काफी नुकसान हो रहा है.
बंद रहने के बाद भी सिर्फ उनके फैक्ट्री में लगभग छह करोड़ रुपये प्रति माह खर्च हो रहे हैं. लॉकडाउन कब तक चलेगा, इसका कोई पता नहीं. डीवीसी द्वारा मिनिमम गारंटी की मांग की जा रही है, जबकि हमने बिजली उपयोग में लाया ही नहीं. फिलहाल झारखंड स्टेट इलेक्ट्रिक रेगुलेटरी कमीशन में जाने की तैयारी की जा रही है. सरकार को भी इस मामले में गंभीरता से विचार करना चाहिए. गुणवंत सिंह, मोंगिया स्टील प्राइवेट लिमिटेड चित्र परिचय : 36. सतविंदर सिंह, सलूजा स्टील प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्री खोलने से स्थिति नहीं संभलेगी. पूर्व से ही लगभग पांच हजार टन का स्टॉक है. लेकिन कहीं से कोई मांग नहीं है. ऐसे में प्रोडक्शन करने से कोई फायदा नहीं होगा. नुकसान से बचने के लिए हमने फैक्ट्री को बंद रखा है. प्रत्येक माह लगभग तीन करोड़ रुपये का खर्च है. यदि सरकार ने राहत पैकेज नहीं दिया, तो कई फैक्ट्रियों की आर्थिक स्थिति संभल नहीं पायेगी. कई फैक्ट्रियां एनपीए की स्थिति में है. इस पूरी अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य व केंद्र सरकार को राहत पैकेज की घोषणा करनी चाहिए.