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दो वर्षो से भरती नहीं हुआ एक भी नवजात

हाल सरकारी चिकित्सा का. 16 लाख की लागत से बनी एनबीएसयू की दोनों इकाइयां बेकार राकेश सिन्हा गिरिडीह : सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में किस प्रकार लापरवाही बरती जा रही है, इसका अंदाजा जिले में बनी दो एनबीएसयू ( न्यू बोर्न स्टैबलाइजेशन यूनिट) को देखकर ही लगाया जा सकता है. आठ-आठ लाख रुपये की लागत से […]

हाल सरकारी चिकित्सा का. 16 लाख की लागत से बनी एनबीएसयू की दोनों इकाइयां बेकार
राकेश सिन्हा
गिरिडीह : सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में किस प्रकार लापरवाही बरती जा रही है, इसका अंदाजा जिले में बनी दो एनबीएसयू ( न्यू बोर्न स्टैबलाइजेशन यूनिट) को देखकर ही लगाया जा सकता है. आठ-आठ लाख रुपये की लागत से बनी जिले की दो एनबीएसयू दो वर्षो से बेकार पड़ी हुई हैं.
जबकि प्राइवेट क्लिनिक में स्थित एनबीएसयू में काफी संख्या में बच्चे प्रति दिन भरती किये जा रहे हैं. जिले के डुमरी व धनवार में स्थित रेफरल अस्पताल में दो वर्ष पहले एनबीएसयू बनायी गयी है. इस यूनिट में वैसे बच्चों को रखा जाना है जो अंडर वेट पैदा होते हैं. सरकार भी ऐसे बच्चों के इलाज के लिए कई तरह के अभियान चला रही है. कई स्थानों पर कुपोषण उपचार केंद्र भी खोले गये हैं.
पीरटांड़, डुमरी और बगोदर के मरीजों के लिए डुमरी में तथा धनवार, जमुआ, तिसरी, गावां, बिरनी और सरिया के नवजात मरीजों के लिए धनवार में एनबीएसयू खोली गयी है, लेकिन अभी तक दोनों ही यूनिट में एक भी नवजात बच्चे को भरती नहीं किया गया है. रेफरल अस्पताल में स्थित एनबीएसयू के कक्ष में ताले लटके रहते हैं. बताया जाता है कि एनबीएसयू में भरती नहीं लिये जाने के कारण कई नवजात की इलाज के अभाव में मौत हो जाती है.
जो लोग सक्षम नहीं हैं वे निजी एनबीएसयू में अपने नवजात बच्चों को भरती नहीं करा पाते. वहीं निजी प्रैक्टिस में सरकारी डॉक्टर ऐसे मशगूल हैं कि सरकारी अस्पताल में बनी एनबीएसयू में बच्चों को भरती तक लेना तक उचित नहीं समझते.
हो रहा आर्थिक शोषण : सूत्रों के अनुसार प्राइवेट एनबीएसयू में एक दिन का चार्ज 600 से 1000 हजार रुपये तक वसूला जाता है. पिछले दिनों डीसी के निर्देश पर धनवार के शिशु रोग विशेषज्ञ के प्राइवेट क्लिनिक में हुई छापामारी में इस बात का भी खुलासा हो गया कि किस तरह सरकारी एनबीएसयू में जरूरतमंद नवजात को भरती न कर प्राइवेट क्लिनिक में भरती किया जा रहा है.
यूनिसेफ ने नर्सो को दी है ट्रेनिंग
एनबीएसयू में पदस्थापित शिशु रोग विशेषज्ञ प्राय: असिस्टेंट नहीं होने का बहाना बनाकर बच्चों को भरती करने से कतराते हैं. वहीं विभाग के जानकार बताते हैं कि एनबीएसयू को संचालित करने के लिए नर्सो को यूनिसेफ ने ट्रेनिंग दी है. इन्हीं नर्सो की देख-रेख में बच्चों को रखा जाना है. बावजूद इन नर्सो को एनबीएसयू में नहीं लगाया जाता.
स्थिति नहीं सुधरी तो होगी कार्रवाई : सिविल सजर्न
गिरिडीह के सिविल सजर्न डॉ एस सन्याल ने बताया कि गिरिडीह जिले में कुपोषित नवजात बच्चों के बेहतर इलाज के लिए डुमरी व धनवार में एनबीएसयू बनायी गयी है. इसमें भरती होने वाले नवजात की चिकित्सा पर होने वाले खर्च के लिए सरकार हर वर्ष ढाई लाख रुपये प्रत्येक एनबीएसयू के लिए आवंटित करती है. यह राशि दोनों ही प्रखंडों को भेज दी जाती है. लेकिन इसमें से अब तक एक भी पैसे खर्च नहीं हो सके हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि एनबीएसयू में पिछले दो वर्षो से बच्चों को भरती नहीं किया गया है. डॉ सन्याल ने कहा कि इस संबंध में संबंधित डॉक्टरों को चेतावनी दी गयी है. यदि स्थिति नहीं सुधरी तो ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
गिरिडीह के डीसी उमाशंकर सिंह ने कहा कि डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप है. इन डॉक्टरों को अपनी भूमिका साबित करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जिले में दो-दो एनबीएसयू रहते हुए भी अंडर वेट बच्चों का इलाज नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. कहा कि उन्हें भी जानकारी मिली है कि एनबीएसयू के लिए आवंटित राशि खर्च नहीं हो पाती और लाखों की लागत से बनी एनबीएसयू को चालू तक नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा कि सरकार वेतन के रूप में डॉक्टरों को मोटी रकम देती ह, लेकिन कई डॉक्टर अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर निजी प्रैक्टिस में मशगूल हैं. ड्यूटी से गायब रहने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध कार्रवाई तेज की जायेगी. श्री सिंह ने ऐसे डॉक्टरों को कार्यशैली बदलने की चेतावनी दी है.

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