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हर वर्ष आग से काजू की फसल को नुकसान

चाकुलिया वन क्षेत्र में लगभग 2100 हेक्टेयर वन भूमि में हैं काजू के जंगल काजू के पेड़ में फूल और फल आते ही शुरू हो जाता है जंगलों में आग लगने का सिलसिला चाकुलिया : चाकुलिया वन क्षेत्र को काजू उत्पादन के मामले में राज्य में अव्वल माना जाता है. यहां की मिट्टी और जलवायु […]

चाकुलिया वन क्षेत्र में लगभग 2100 हेक्टेयर वन भूमि में हैं काजू के जंगल

काजू के पेड़ में फूल और फल आते ही शुरू हो जाता है जंगलों में आग लगने का सिलसिला
चाकुलिया : चाकुलिया वन क्षेत्र को काजू उत्पादन के मामले में राज्य में अव्वल माना जाता है. यहां की मिट्टी और जलवायु काजू की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. इस वन क्षेत्र में लगभग 2100 हेक्टेयर वन भूमि पर काजू के जंगल हैं. इसके लिए अलावे रैयत भूमि पर भी काजू के जंगल हैं. हर साल आग से काजू वनों में भी विभिन्न कारणों से आग लगती है और फसल को भारी नुकसान होता है. परंतु आग पर रोक थाम के लिए वन विभाग की ओर से कोई कारगर कदम नहीं उठाया जाता है. वन विभाग के पास मैन पॉवर और संसाधन की कमी है.
वर्ष 2000 के पूर्व तक वन विभाग काजू वनों की नीलामी करवाता था. इससे वन विभाग को राजस्व की प्राप्ति होती थी. इसके बाद से काजू वनों की नीलामी की प्रक्रिया को बंद कर दिया गया. काजू बीज संग्रह का जिम्मा संबंधित वन सुरक्षा समिति को दिया गया. काजू बीज से प्राप्त होने वाले आय का 90 प्रतिशत समिति के खाता में और 10 प्रतिशत वन विभाग के खाता में जमा होता है. समिति को मिले 90 प्रतिशत अंश से लाभ से वन विकास तथा ग्राम विकास करने का प्रावधान तय किया गया है.
परंतु काजू वनों का रख रखाव बेहतर तरीके से नहीं होता है. काजू के वन झाड़ियों और सूखे पत्तों से भरे होते हैं. इसके कारण आग लगती है और हर साल काजू की फसल को भारी नुकसान होता है.
काजू में हैं रोजगार की संभावनाएं : यहां काजू से रोजगार की काफी संभावनाएं हैं. मगर सरकार की उदासीनता से रोजगार की संभावना खत्म हो रही है. वन क्षेत्र में वन विभाग के तहत काजू प्रोसेसिंग का एक भी प्लांट नहीं है. वन विभाग ने पिछले साल इसके लिए प्रस्ताव भेजा था. यहां उत्पादित काजू पश्चिम बंगाल में चला जाता है. क्योंकि वहां काजू के कई प्रोसेसिंग प्लांट लगे हैं.

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