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आदिवासी बच्चों में विज्ञान के प्रति बढ़ानी होगी अभिरुचि

कार्यक्रम . चार दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन प्रशिक्षक डॉ अंशुमाला ने कहा पाठ‍्यपुस्तक के भारी भरकम नहीं सरल भाषा में देनी होगी शिक्षा मुख्य प्रशिक्षक डॉ अंशुमाला देश की लब्ध प्रतिष्ठित ट्रेनर दुमका : भारत ज्ञान विज्ञान समिति इन दिनों आदिवासी बच्चों में विज्ञान के प्रति अभिरुचि व जागरूकता बढ़ाने का काम कर […]

कार्यक्रम . चार दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन

प्रशिक्षक डॉ अंशुमाला ने कहा
पाठ‍्यपुस्तक के भारी भरकम नहीं सरल भाषा में देनी होगी शिक्षा
मुख्य प्रशिक्षक डॉ अंशुमाला देश की लब्ध प्रतिष्ठित ट्रेनर
दुमका : भारत ज्ञान विज्ञान समिति इन दिनों आदिवासी बच्चों में विज्ञान के प्रति अभिरुचि व जागरूकता बढ़ाने का काम कर रही है. इसके लिए संतालपरगना के प्रमंडलीय मुख्यालय में चार दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण शिविर लगाया गया है. प्रशिक्षण दे रही मुख्य प्रशिक्षक डॉ अंशुमाला देश की लब्ध प्रतिष्ठित ट्रेनर हैं. चालीस से अधिक विज्ञान शिक्षक यहां उनसे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. आसपास उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल से वे विज्ञान को प्रयोगों के जरिये अनोखे अंदाज से पढ़ा रही हैं, जिससे संबंधित शिक्षक भी बेहद प्रभावित हो रहे हैं और पठन-पाठन की नयी शैली से अवगत हो रहे हैं.
तीन दशक पहले 1986 में आइआइटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर चुकी डॉ अंशुमाला कुछ वर्षों तक सेवा में रहीं, उसके बाद उन्होंने विज्ञान के प्रसार एवं जागरूकता के क्षेत्र में खुद को समर्पित कर दिया. भारत ज्ञान विज्ञान समिति के साथ मिलकर विज्ञान की पढ़ाई को सरलतम बनाने की दिशा में वे लगातार काम कर रही हैं. वे शिक्षा, स्वास्थ्य और आम जन में चेतना विकसित करने में भी अहम भूमिका निभा रही है. इन्हीं वजह से वे आज देश में प्रतिष्ठित शख्सियत बन चुकी हैं. प्रभात खबर ने डॉ अंशुमाला से विशेष बातचीत की. प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल: आपके द्वारा शिक्षकों को किस तरह का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ऐसे प्रशिक्षण का ध्येय क्या है?
डॉ अंशुमाला : भारत ज्ञान विज्ञान समिति जल्द ही बाल विज्ञान मेला का आयोजन करने जा रही है. यह बाल विज्ञान मेला खासकर वैसे स्कूलों को ध्यान में रखकर आयोजित किया जा रहा है, जहां जनजातीय वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं. हम ऐसे स्कूलों के विज्ञान विषय के शिक्षकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं तथा उन्हें विज्ञान की बारीकियों को सरलतम, सहजतम और बच्चों की भाषा में बताने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, ताकि वर्ग में भी वे इसे अपनायें और बच्चों को विज्ञान की कौतूहल से अवगत करा सकें.
सवाल: क्या वजह है कि विज्ञान से बच्चे अक्सर दूर भागते हैं ?
डॉ अंशुमाला: हमारी कोशिश है कि शिक्षक अध्यापन कार्य के दौरान भारी शब्दों को पीछे छोड़ें. पाठ‍्यपुस्तक के भारी भरकम शब्द की बजाय सामान्य बोलचाल की भाषा ज्यादा ग्राह्य होती है. दुनिया और कुदरत को बच्चे समझे. उन्हें मजा भी आये, उत्सुकता भी बढ़े, हम ऐसी कोशिश में जुटे हैं कि स्कूल में रटवाने की वजय बच्चों में समझ विकसित हो, ताकि बच्चे इस विषय से डरे नहीं, फेल न करें और यह विषय उनके आगे बढ़ने में बाधक भी न बने.
सवाल : विषयवार शिक्षक न होने की वजह से भी कहीं विज्ञान के प्रति बच्चों की अभिरुचि तो नहीं घटी?
डॉ अंशुमाला: यह सही है कि झारखंड ही नहीं दूसरे राज्य में भी विषयवार शिक्षक मिडिल व हाई स्कूलों में नहीं है. साहित्य के शिक्षक को विज्ञान पढ़ाना पड़ता है, जिसे खुद उन्होंने नहीं पढ़ा. यह भी एक वजह है कि बच्चे विज्ञान को सही ढंग से समझ नहीं पाते. शिक्षक क्लास को रुचिकर बनायें. बच्चों से प्रयोग कराये. अब तो सरकारी स्तर पर हर स्कूलों में टीएलएम और किट‍्स भी भेजे गये हैं. इसका समुचित उपयोग होना चाहिए. इससे बहुत सहायता मिलेगी.
जनजातीय बच्चों को विज्ञान के प्रति जागरूक बनाने के लिए ऐसी पहल क्यों करनी पड़ रही है?
डॉ अंशुमाला : जनजातीय समाज प्रकृति के बिल्कुल करीब रहता है. बावजूद उसे पर्यावरण, प्रकृति और उससे संबंधित वैज्ञानिक पहलुओं की जानकारी नहीं होती. वे अंधविश्वास में घिरे होते हैं. इसकी वजह विज्ञान को लेकर उनकी समझ में कमी भी है. यही वजह है कि आदिवासी समाज आज भी डायन प्रथा जैसी कुरीतियों व अंधविश्वास को मानता है. दरअसल स्कूली शिक्षा के दौरान भाषा ज्ञानार्जन का एक बहुत बड़ा माध्यम होता है. विषय पर समझ तैयार होने से पहले कठिन शब्दों के इस्तेमाल से आदिवासी बच्चे विज्ञान से दूर भागने लगते हैं. यही एक बड़ा कारण है कि आदिवासी बच्चे विज्ञान संकाय की पढ़ाई बहुत कम कर पाते है. यही कारण है कि आज आदिवासी समाज से विज्ञान विषय के शिक्षक भी नगण्य हैं. वैज्ञानिक तो शायद ही कोई बन पाये हों. स्थिति बदलने की जरूरत है. शिक्षण प्रणाली में बदलाव लाने की जरूरत है.

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