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प्रमुख खबर//गठन तो दूर, पहाडि़या बटालियन का नहीं तैयार हो सका कोई खाका

संवाददाता, दुमकादुमका में पहली कैबिनेट मीटिंग जनवरी 2006 में जब हुई थी, तब राज्य सरकार द्वारा पहाडि़या सैन्य बटालियन के गठन की घोषणा की गयी थी. दूसरी बार पांच साल बाद बैठक हुई, तो सरकार ने इस प्रस्ताव को विधिवत मंजूरी दी थी. उस वक्त इसके गठन को लेकर छह करोड़ रुपये देने तथा हर […]

संवाददाता, दुमकादुमका में पहली कैबिनेट मीटिंग जनवरी 2006 में जब हुई थी, तब राज्य सरकार द्वारा पहाडि़या सैन्य बटालियन के गठन की घोषणा की गयी थी. दूसरी बार पांच साल बाद बैठक हुई, तो सरकार ने इस प्रस्ताव को विधिवत मंजूरी दी थी. उस वक्त इसके गठन को लेकर छह करोड़ रुपये देने तथा हर वर्ष स्थापना लागत के तौर पर 38 करोड़ रुपये भुगतान करने की दिशा में भी सैद्धांतिक मंजूरी दी गयी थी. इस पहाडि़या सैन्य बटालियन में एक हजार युवाओं को शामिल किया जाना था. सीधी नौकरी का भी नहीं मिल रहा लाभपहाडि़या शिक्षित युवाओं को सीधी नियुक्ति देने की घोषणा का भी लाभ नहीं मिल रहा है. इस क्षेत्र में रहने वाले पहाडि़या विकास से वंचित हैं. विलुप्ति के कगार पर पहुंच रही इस आदिम जनजाति के लिए केंद्र व राज्य की सरकार करोड़ों रुपये बहाती है, पर उसका लाभ इस वर्ग तक नहीं पहुंच पाता.———————————बॉक्स// क्लीवलैंड ने भी दिया था सुझावपहाडि़या आदिम जनजाति गुरिल्ला युद्ध में माहिर होते हैं. इतिहास भी इसका गवाह रहा है. 1779 में भागलपुर के तत्कालीन कलक्टर आगस्टस क्लीवलैंड ने भी पहाडि़या सैन्य बटालियन गठित करने का सुझाव तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स को दिया था. पहाडि़या सैन्य बटालियन गठित कर सरकार संताल परगना की पहाडि़यों पर तेजी से अपने संगठन का विस्तार कर रहे नक्सलियों पर भी शिकंजा कस सकती है.

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