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भारत कोकिंग कोल इंप्लाइज को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड, जारी है मनी लांड्रिंग का खेल

एक पाठक: भारत कोकिंग कोल इंप्लाइज को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड (जेलगोड़ा यूनिट) में करोड़ों रुपये के मनी लॉड्रिंग (काले धन को वैध बनाना अथवा अवैध रूप से प्राप्त धन के स्रोतों को छिपाने का खेल) बदस्तूर जारी है. बीते 29 अप्रैल को सुबह 11 बजे को-ऑपरेटिव कार्यालय में लिपिक धीरेंद्र कुमार सिंह द्वारा कर्मचारी रामप्रसाद […]

एक पाठक: भारत कोकिंग कोल इंप्लाइज को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड (जेलगोड़ा यूनिट) में करोड़ों रुपये के मनी लॉड्रिंग (काले धन को वैध बनाना अथवा अवैध रूप से प्राप्त धन के स्रोतों को छिपाने का खेल) बदस्तूर जारी है. बीते 29 अप्रैल को सुबह 11 बजे को-ऑपरेटिव कार्यालय में लिपिक धीरेंद्र कुमार सिंह द्वारा कर्मचारी रामप्रसाद गोस्वामी के साथ गाली-गलौज और मारपीट करने की घटना के पीछे भी मनी लॉन्डरिंग ही मुख्य वजह है.

करीब 51 वर्ष पूर्व स्थापित यह को-ऑपरेटिव सोसाइटी अक्सर विवादों में घिरी रहती है और इसका कारण यहां कार्यरत कर्मचारियों का आर्थिक स्वार्थ है. पता चला है कि यहां के कर्मचारियों का एक बड़ा गुट समिति के सदस्यों को लोन दिलाने के धंधे में संलिप्त है. लोन आवंटन की प्रक्रिया के लिए निर्धारित दिशा निर्देशों को दरकिनार कर यह जमात वैसे सदस्यों को ऋण मुहैया कराने के लिए प्रयासरत रहती, जिनसे आर्थिक लाभ मिल सके. इस घपलेबाजी की पूरी जानकारी होते हुए भी समिति के पदाधिकारीगण आंख मूंदे रहते हैं.

कैसे होती है मनी लॉंड्रिंग : इस को-ऑपरेटिव सोसाइटी की नयी कार्यकारिणी ने अगस्त, 2015 में बैठक कर कोष की घपलेबाजी कर रोक लगाने के लिए कई प्रस्ताव पारित किये, इनमें प्रमुख हैं-(1) लोन की कटौती वेतन पर्ची के ही माध्यम से होगी (2) ऋण चुकता करने में 20,000 रुपये से अधिक का डिमांड ड्राफ्ट-चेक स्वीकार नहीं किया जायेगा व नकदी बिलकुल स्वीकार्य नहीं होगी (3) नयी प्रबंध समिति ने पूर्ववर्ती कार्यकारिणी द्वारा 6-7-2013 को पारित प्रस्ताव को स्वीकृत किया, जिसमें कहा गया है कि 60 हजार रुपये के अधिक राशि को चुकता करने वाले सदस्य यदि 45 दिनों के अंतराल में किश्तवार भुगतान करते भी हैं, तो भी उनके ऋण आवेदन दो माह के पूर्व स्वीकार नहीं किये जायेंगे. लेकिन को-ऑपरेटिव सोसाइटी के कोष में हेराफेरी करने वाली जमात इन सभी प्रस्तावों को ठेंगा दिखा कर अपने चहेतों को ऋण आवंटन कराने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाती है. इसके लिए इस जमात के लोग ऋण आवेदक की बकाया राशि का भुगतान अपने या अपने परिचितों के एकाउंट से चेक द्वारा करा कर उसी ऋणी के लिए नये ऋण आवेदन को स्वीकृत करा नया लोन दिलवा देते हैं. फलत: जरूरतमंद ऋण आवेदक अपनी बारी का इंतजार करते ही रह जाते हैं.
लोन का चेक अन्य एकाउंट से
को-ऑपरेटिव सोसाइटी में मजे की बात यह है कि ज्यादातर ऋण प्राप्तकर्ता लोन का भुगतान अन्य लोगों के बैंक एकाउंट से करते हैं, जबकि इसका भुगतान ऋण प्राप्तकर्ता के बैंक खाते से ही होनी चाहिए. लेकिन ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि को-ऑपरेटिव सोसाइटी में सक्रिय जमात अपने या अपने परिचितों के एकाउंट से ऋण प्राप्त की बकाया ऋण राशि चुकता करा देती है, ताकि उसे तत्काल नया ऋण आवंटित कराया जा सके. इस खेल में जमात के लोगों को भारी आर्थिक लाभ प्राप्त होता रहता है. प्रतिमाह इस खेल में 40-50 लाख रुपये के वारे-न्यारे किये जाते हैं. इस खेल में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के लगभग सभी पदाधिकारी एवं कर्मचारी शरीक-ए-गुनाह हैं. यहां यह बात भी गौर-ए-तलब है कि ज्यादातर ऋण आवेदक का सैलरी एकाउंट अलग होता है, जबकि उसे ऋण का भुगतान उसके अन्य बैंक एकाउंट में होता है. बताया जाता है कि यह जाल ऋण घपलाबाज गुट के लोगों द्वारा बिछाया गया है. ऋण प्राप्तकर्ता के दूसरे एकाउंट के खाते और चेक घपलेबाजों के हाथों में होते हैं और वे अन्यान्य खर्च-कमीशन के नाम पर ऋण प्राप्तकर्ता से अपना हिस्सा झपट लेते हैं.
कंप्यूटर से परहेज क्यों
सितंबर, 1966 में स्थापित यह सहकारी समिति लगभग 51 साल पुरानी और सबसे बड़ी सहकारी संस्था है. इसमें करीब 9000 से अधिक सदस्य हैं. इसका सालाना टर्न ओवर करीब 70 करोड़ रुपये से अधिक है. समिति में कोष की कोई कमी नहीं है. बावजूद इसके पांच दशक बीत जाने और आज के नये डिजिटल युग के दौर में भी इस को-ऑपरेटिव सोसाइटी में सारा लेजर मैनुअली मेंटेन होता है. यहां कंप्यूटरीकरण की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है. इस को-ऑपरेटिव सोसाइटी में जो भी प्रबंध समिति कार्यभार संभालती है, वह कंप्यूटरीकरण का प्रस्ताव तो लेती है, लेकिन वह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. मतलब साफ है कि यदि कंप्यूटर से ऑन लाइन लेजर मेंटन होने लगेंगे तो फिर आर्थिक गड़बड़झाले का रास्ता बंद हो जायेगा. यही कारण है कि इस को-ऑपरेटिव सोसाइटी के कर्मचारियों के बीच अक्सर घोटालेबाजी के पैसों के बंदरबांट को लेकर सिर फुटव्वल की घटनाएं होती रहती है. बीते 29 अप्रैल 2017 को घटित मारपीट की घटना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है. अगर इस समिति के कार्यकलापों की गहरायी से पड़ताल करायी जाये तो और अनेक घोटालों का पर्दाफाश होना अवश्यंभावी है.

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