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इंटक को आग लग गयी इंटक के चिराग से

धनबाद: किसी शायर ने कहा है-“दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से, इस घर को आग लग गयी घर के चिराग से.” 10वें जेबीसीसीआइ से इंटक के बाहर होने की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. ददई -राजेंद्र के बीच चले शह-मात के बीच विवाद अदालत पहुंचा और फिर कोर्ट ने जेबीसीसीआइ में […]

धनबाद: किसी शायर ने कहा है-“दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से, इस घर को आग लग गयी घर के चिराग से.” 10वें जेबीसीसीआइ से इंटक के बाहर होने की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. ददई -राजेंद्र के बीच चले शह-मात के बीच विवाद अदालत पहुंचा और फिर कोर्ट ने जेबीसीसीआइ में इंटक को शामिल करने पर रोक लगा दी. कोल इंडिया लिमिटेड प्रबंधन ने इसका पालन किया और शुक्रवार को बिना इंटक के 10वें जेबीसीसीआइ का गठन हुआ. अधिसूचना भी जारी हो गयी. अब इंटक के नेता इसके लिए किसको जिम्मेवार ठहरायेंगे?
इंटक पुराण : ददई दुबे-राजेंद्र सिंह के बीच इंटक को लेकर विवाद करीब डेढ़ दशक पुराना है. रांची में इंटक के आयोजित अधिवेशन से शुरू हुआ विवाद अंतत: सिंतबर 2016 को दिल्ली हाइकोर्ट पहुंचा. नौवें जेबीसीसीआइ में शामिल होने को लेकर दोनों गुटों ने दावेदारी पेश की थी. इस कारण नौवें जेबीसीसीआइ के गठन में विलंब होने लगा थी. इसके समाधान के लिए 18-19 फरवरी, 2011 को तत्कालीन कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय मीटिंग हुई थी.

उस बैठक में मंत्रालय के सभी सचिव, कोल इंडिया के चेयरमैन समेत तमाम अनुषंगी कंपनियों के सीएमडी उपस्थित थे. बैठक में अधिकारियों ने कहा था कि इंटक विवाद के कारण जेबीसीसीआइ के गठन में विलंब हो रहा है. तब उस बैठक में निर्णय लिया गया था कि इंटक को छोड़, चार यूनियनों को लेकर जेबीसीसीआइ का गठन किया जाये. फैसला होने पर इंटक के प्रतिनिधि को शामिल कर लिया जायेगा. लेकिन, बाद में राजेंद्र गुट के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए नौवां जेबीसीसीआइ का गठन हुआ था. 30 जनवरी, 2012 को नौवां वेतन समझौता संपन्न हुआ था, उसमें ददई गुट को पटखनी खानी पड़ी थी.

10 वां जेबीसीसीआइ : नौवें जेबीसीसीआइ में मात देने के बाद राजेंद्र गुट निश्चित हो गया. लेकन 10वें जेबीसीसीआइ के गठन के काफी पहले से ही ददई गुट एकदम चौकस था. 31 अगस्त, 2016 को नौवें जेवीसीसीआइ के स्टैंडर्डराइजेशन कमेटी की बैठक में 10वें जेबीसीसीआइ के गठन पर सहमति बनी. इस बैठक में राजेंद्र सिंह भी मौजूद थे. इसकी सूचना जारी होते ही ददई गुट सक्रिय हुए और 14 सितंबर को दिल्ली हाइकोर्ट में एक याचिक दाखिल कर दी. 16 सितंबर को सुनवाई के बाद जज संजीव सचदेवा ने जेबीसीसीआइ में इंटक को शामिल करने पर रोक लगा दी. अदालत के इस फैसले के बाद राजेंद्र गुट की नींद तो जरूर खुली, मगर नेता गंभीर नहीं हुए. इस फैसले के बाद कोल इंडिया ने बोनस पर आयोजित 22 सितंबर की बैठक स्थगित कर दी. एक अक्तूबर को कोल इंडिया ने एक पत्र जारी कर चार अक्तूबर को बोनस पर बैठक होने की जानकारी देते हुए इंटक छोड़ चार यूनियन नेताओं को बुलाया. फिर अगले ही दिन कोल इंडिया ने दूसरा पत्र जारी करते हुए बोनस की बैठक में राजेंद्र गुट को भी आमंत्रित किया. बैठक भी हुई. राजेंद सिंह भी शामिल हुए. इसके बाद ददई गुट ने 18 अक्तूबर को दिल्ली हाइकोर्ट में अवमाननावाद दाखिल किया. इस पर 21 अक्तूबर को सुनवाई करते हुए जज संजीव सचदेवा ने कोल इंडिया प्रबंधन और राजेंद्र गुट को नोटिस जारी कर करते हुए अगली सुनवाई के लिए तीन नवंबर की तिथि तय की. तीन नवंबर को कोर्ट ने राजेंद्र गुट की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए जेबीसीसीआइ में इंटक के शामिल होने पर लगी रोक को जारी रखते हुए अगली सुनवाई की तारीख 20 जनवरी, 2017 तय की. कोर्ट के इस आदेश के बाद बिना इंटक जेबीसीसीआइ गठन के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं बचा.

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