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यह जलसंकट सरकारी है!

धनबाद : बरसात के मौसम में शहर में पेयजल संकट गहरा गया है. दो-दो दिन तक जलापूर्ति नहीं हो रही है. डर है कि लोग इधर-उधर का पानी पीकर उदर रोगों से ग्रस्त न हो जायें. ऐसे ही इन दिनों डायरिया-पीलिया और अन्य बीमारियों का प्रकोप बढ़ा रहता है. और इस संकट का कारण केवल […]

धनबाद : बरसात के मौसम में शहर में पेयजल संकट गहरा गया है. दो-दो दिन तक जलापूर्ति नहीं हो रही है. डर है कि लोग इधर-उधर का पानी पीकर उदर रोगों से ग्रस्त न हो जायें. ऐसे ही इन दिनों डायरिया-पीलिया और अन्य बीमारियों का प्रकोप बढ़ा रहता है. और इस संकट का कारण केवल सरकारी लापरवाही है. जनप्रतिनिधि हमारी समस्याओं के प्रति उदासीन हैं और अफसर इसे गंभीरता से नहीं ले रहे. शहर तीन महीने से गंभीर पेयजल संकट झेल रहा है.
होनी चाहिए थी दो टाइम जलापूर्ति : अगस्त में बारिश के बाद मैथन के इंटकवेल का तीनों गेट तक पानी लबालब भर गया है. हालत यह हुई कि मैथन डैम से पानी छोड़ा जाने लगा. विभाग ने दावा किया था कि पानी की कोई कमी नहीं है. अब दोनों टाइम जलापूर्ति शुरू कर दी जायेगी. लेकिन इसके उलट अब तो दो-दो दिन पानी नहीं मिल रहा है.
हुई 18 में से केवल पांच जलमीनारों से अापूर्ति : शहर के 18 में से सिर्फ पांच जलमीनारों से मंगलवार को जलापूर्ति हुई. इसमें स्टील गेट, पीएमसीएच, पुलिस लाइन, हीरापुर एवं मेमको क्षेत्र शामिल हैं. 13 जगहों पर जलापूर्ति नहीं हुई.
जलमीनार में पानी भरने का काम रुका : पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कनीय अभियंता देवेंद्र नाथ महतो के अनुसार शाम चार बजे भेलाटांड़ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का पानी खत्म हो जाने के कारण जलमीनार में पानी भरने का काम रोक दिया. बुधवार की सुबह सबसे पहले चीरागोड़ा, पॉलक्टेक्निक एवं भूली में जलापूर्ति होगी. उसके बाद दोपहर तक दो से तीन और जलमीनार से जलापू्र्ति की जायेगी.
मेंटेनेंस के लिए निगम नहीं देता रकम : पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की मानें तो नगर निगम को हर साल जलापूर्ति के मेंटेनेंस के लिए तीन करोड़, 26 लाख रुपये देने हैं. लेकिन उसकी ओर से यह रकम नहीं मिलने के कारण सरकार के यहां से जब राशि आती है तभी मेंटेनेंस करने वाली एजेंसी को भुगतान किया जाता है.
एक पंप से भेजा रहा पानी अपर्याप्त
मैथन में चार पंप हैं. इन पंपों से पानी भेलाटांड़ स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में भेजा जाता है. वहां से फिल्टर होने के बाद शहर में जलमीनारों से सप्लाई होती है. इन चार पंपों में दो काफी समय से खराब हैं. उसकी मरम्मत नहीं करायी गयी. बचे दो पंपों से भेलाटांड़ पानी भेजा जा रहा था. लेकिन गुरुवार को दोनों पंपों के मोटर खराब हो गये. एक पंप को किसी तरह बनाया जा सका. शुक्रवार से एक ही पंप से भेलाटांड़ पानी भेजा जा रहा है. जरूरत भर का पानी पहुंच नहीं रहा है. दो-दो दिन बाद जलापूर्ति की जा रही है. सवाल उठता है कि विभाग ने चारों पंपों के खराब होने का इंतजार क्यों किया? जब पहला पंप खराब हुआ, तभी उसे बनाने की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए थी?
जुगाड़ तंत्र से पंप की मरम्मत
मैथन के खराब पंपों में एक (22 एचपी) की कीमत एक करोड़ रुपये से ऊपर है. जून से वह खराब पड़ा है. पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने इसे बनाने के लिए नगर विकास मंत्रालय और राज्य सरकार के पास जून में ही पत्र भेजा है. 58 लाख रुपये की मांग की गयी है. जब तक राशि नहीं आती है तब तक दो खराब मोटर को मिलाकर एक पंप को चालू करना है. उसमें जो पार्ट्स कम रहे थे उसे कोलकाता से मंगवाया गया है. यह जोगाड़ तंत्र तो वर्षों पुराना है. फिर क्या बदला? सबसे बड़ा सवाल, हमारे टैक्स का पैसा कहां जाता है आखिर? जब पंप मरम्मत के लिए रकम नहीं मिलती?
बरसात मेें भी प्यासे रहने को अभिशप्त
पेयजल के लिए गरमी भर शहरवासी परेशान रहे. मैथन डैम का जलस्तर कम होने से 20 जून से एक टाइम जलापूर्ति की जाने लगी. कई-कई दिन जलापूर्ति ठप भी रही. इसके अलावा बिजली संकट के कारण भी कई दिन पानी नहीं मिला. अब प्रकृति मेहरबान है. सावन की बारिश के बाद मैथन में इतना पानी हो गया है कि दोनों टाइम जलापूर्ति की जा सके. लेकिन पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की लापरवाही से एक टाइम जलापूर्ति पर भी आफत है. देश और राज्य में बदलाव के जो दावे किये जा रहे हैं, धनबाद में पानी-बिजली के सवाल पर वह तो दिख नहीं रहा. सरकारी कामकाज तो पहले ही की तरह हो रहा है. हो जाये तो अच्छा, नहीं हो तो और भी अच्छा!

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