धनबाद: ठंड के मौसम में खान दुर्घटना की संभावना काफी बढ़ जाती है. इस सिलसिले में हुए एक शोध पर विश्वास किया जाये, तो खदान दुर्घटना पर मौसम की मार का असर पड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश बड़ी खान दुर्घटनाएं ठंड के मौसम में हुईं. आइएसएम के तत्कालीन प्रोफेसर एलएन उपाध्याय, प्रोफेसर बानू मुखर्जी व डॉ प्रमोद पाठक ने इस विषय पर गहन शोध किया.
शोध एक शताब्दी तक की घटना पर आधारित थी. लगभग एक दशक पूर्व किये गये शोध के अनुसार, वर्ष 1904 से 1994 के बीच कुल 223 बड़ी खान दुर्घटनाएं हुईं. इनमें से सर्वाधिक 88 दुर्घटनाएं जाड़े में, 74 बरसात में तथा 61 गरमी के मौसम में हुईं. एक-एक दशक के दौरान हुई दुर्घटनाओं पर अलग-अलग अध्ययन करने के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि समय बीतने के साथ ही दुर्घटनाओं में कमी आयी. इस बीच कुल 22 दुर्घटनाओं में से 11 जाड़े में हुईं. इसी तरह वर्ष 1914 से 1924 के बीच कुल 31 दुर्घटनाओं में से 11 जाड़े में हुईं.
वर्ष 1944 से 54 के बीच जाड़े की अपेक्षा बरसात में अधिक दुर्घटनाएं हुईं. तकनीक में हुए सुधार तथा कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद दुर्घटनाओं में अपेक्षाकृत रूप से काफी कमी आयी है. विशेषज्ञों के अनुसार, जाड़े में दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि की एक मुख्य वजह उत्पादन बढ़ाने का दबाव होता है. वित्तीय वर्ष के अंतिम चार माह जाड़े की ऋतु होने के कारण सभी खदानों में उत्पादन बढ़ाने का दबाव ऊपर से रहता है. ऐसे में गलत तरीके से भी खनन कार्य किये जाते हैं. इस कारण दुर्घटना की संभावना भी बढ़ी रहती है.