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कठघोड़ा और नौटंकी अब कहां!

धनबाद: पैदल ही पूरे शहर की पूजा घूम लेते थे. उन दिनों सस्ती का जमाना था. घर से आठ आना मिलता था और तीन दिनों तक पूजा का मजा लेते थे. 60 के दशक के बारे में बताते हुए शास्त्री नगर निवासी राम अवतार सिंघल की आंखों में चमक आ जाती है. वह बताते हैं […]

धनबाद: पैदल ही पूरे शहर की पूजा घूम लेते थे. उन दिनों सस्ती का जमाना था. घर से आठ आना मिलता था और तीन दिनों तक पूजा का मजा लेते थे. 60 के दशक के बारे में बताते हुए शास्त्री नगर निवासी राम अवतार सिंघल की आंखों में चमक आ जाती है. वह बताते हैं : उन दिनों धनबाद शहर में गिने चुने स्थानों पर ही दुर्गा पूजा होती थी.

बैंक मोड़, हीरापुर, झरिया आदि. 60 के दशक में अपने दोस्तों के साथ पैदल ही घूमते थे. घर से आठ आना मिलता था तो काफी खुशी होती थी. एक आना में दर्जन भर गुपचुप और एक आना में ही कई जलेबी मिल जाती थी. लेकिन अब तो मेला सिर्फ नाम का ही जाता हूं. पूजा में सिर्फ माता के दर्शन के लिए निकलते है. काफी भीड़ भाड़ हो जाने के कारण हिम्मत भी नहीं करती.

वो बातें याद आती है : दुर्गा पूजा के पंडाल के पास पहले खास तौर से मेला में नौटंकी, नाटक होते थे. कठघोड़ा होता था. बच्चे खूब शोर मचा कर इसकी सवारी करते थे. अब तो मेला में नाटक व बाहर से आने वाली नौटंकी देखने को ही नहीं मिलती.

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