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सिरदर्द बनी आइटीआइ की संयुक्त प्रवेश परीक्षा

धनबाद: राज्य में विफल हो गयी है आइटीआइ में संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा. छात्र हित में चार साल से लागू यह प्रक्रिया छात्रों व संस्थान दोनों के लिए सिरदर्द बन चुकी है. कभी भी समय पर प्रवेश परीक्षा नहीं होने के कारण छात्र नामांकन के लिए राज्य से पलायन कर रहे हैं. इस बार परीक्षा […]

धनबाद: राज्य में विफल हो गयी है आइटीआइ में संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा. छात्र हित में चार साल से लागू यह प्रक्रिया छात्रों व संस्थान दोनों के लिए सिरदर्द बन चुकी है. कभी भी समय पर प्रवेश परीक्षा नहीं होने के कारण छात्र नामांकन के लिए राज्य से पलायन कर रहे हैं. इस बार परीक्षा की तिथि दो बार टल चुकी है. अगली तिथि की घोषणा अबतक नहीं की गयी है. जबकि इस समय तक नामांकन के लिए काउंसेलिंग शुरू हो जानी चाहिए थी. विदित हो कि आइटीआइ में संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा वर्तमान में देश के सिर्फ दो राज्यों में झारखंड और उड़ीसा होती है. उड़ीसा में वर्ष 2014 से यह प्रक्रिया लागू की गयी है.
क्या है वजह
उक्त परीक्षा का भार जिस जेसीइसी बोर्ड पर है उस पर इंजीनियरिंग, डिप्लोमा सहित अन्य परीक्षाओं के आयोजन की भी जिम्मेवारी है. ऐसे में तमाम परीक्षा व काउंसेलिंग निबटाने के बाद अंतिम समय में वह आइटीआइ की प्रवेश परीक्षा का आयोजन करता है. तब तक सरकारी व निजी दोनों ही संस्थानों में नामांकन की प्रक्रिया ठप रहती है. चूंकि कोर्स में सेमेस्टर सिस्टम लागू है तथा कोर्स एनसीवीटी द्वारा संचालित है इसलिए इसकी तिथि साल भर पहले ही तय रहती है. इस बार एनसीवीटी की कट ऑफ तिथि 31 जुलाई है जबकि यहां अब तक प्रवेश परीक्षा भी नहीं हुई है. ऐसे में परीक्षा, रिजल्ट, काउंसेलिंग सब कुछ 31 जुलाई से पहले होने के आसार नहीं दिख रहे .
टूटने लगा निजी संस्थानों का धैर्य
इस मामले में अब निजी संस्थानों का धैर्य जवाब दे चुका है. प्रवेश परीक्षा को दरकिनार कर ऐसे संस्थानों ने नामांकन के लिए विज्ञापन जारी करना शुरू कर दिया है. झारखंड प्रदेश निजी आइटीआइ एसोसिएशन के महासचिव कुमार देव रंजन ने बताया कि चार साल से लगातार निजी संस्थानों में संयुक्त प्रवेश परीक्षा के कारण नामांकन के लाले पड़ रहे हैं. कई बार विरोध भी हुआ लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला. नामांकन के लिए राज्य के छात्र दूसरे प्रांत में चले जाते हैं. ऐसे में सीटों की तुलना में परीक्षार्थी की संख्या इतनी कम हो जाती है कि काउंसेलिंग में परीक्षा में शामिल सभी छात्रों को पास मान कर काउंसेलिंग कराना पड़ता है. जो परीक्षा की विफलता का प्रमाण है.

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