कुछ पार्षद सिर्फ मानदेय तक ही सीमित रह गये. कुछ तेज तर्रार पार्षद अपने-अपने क्षेत्र में करोड़ों का काम कराने में सफल रहे. पीसी भी लेने से नहीं चूके. इन पांच वर्षो में पार्षदों ने मानदेय के रुप में 2.07 करोड़ रुपये लिये. इसके अलावा मेयर ने 5.40 लाख व डिप्टी मेयर ने 4.86 लाख मानदेय लिये. 25 मई को नगर निगम चुनाव प्रस्तावित है. अगला निगम का बोर्ड कैसा होगा, यह तो समय बतायेगा. 55 पार्षदों में कुछ पार्षदों का वार्ड खत्म हुआ है. लेकिन अब भी चालीस से अधिक पार्षद पुराने हैं. इन पार्षदों को पांच साल का लेखा-जोखा जनता के सामने रखना होगा. जनता ही तय करेगी कि आगे उन्हें वोट दें या ना दें.
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पांच साल में पार्षदों ने उठाया 2.07 करोड़ मानदेय
धनबाद: नगर निगम बोर्ड का गठन जुलाई 2010 में हुआ. पांच साल में 14 बैठकें हुई. लेकिन विकास के नाम पर कुछ खास उपलब्धि नहीं. पांच साल में दर्जनों घोटाले सामने आये. मामला बोर्ड में उठा, कार्रवाई का आश्वासन दिया गया. लेकिन एक भी मामले में कार्यान्वयन नहीं हुआ. कुछ पार्षद सिर्फ मानदेय तक ही […]
धनबाद: नगर निगम बोर्ड का गठन जुलाई 2010 में हुआ. पांच साल में 14 बैठकें हुई. लेकिन विकास के नाम पर कुछ खास उपलब्धि नहीं. पांच साल में दर्जनों घोटाले सामने आये. मामला बोर्ड में उठा, कार्रवाई का आश्वासन दिया गया. लेकिन एक भी मामले में कार्यान्वयन नहीं हुआ.
जनवरी 2015 तक ले चुके हैं मानदेय : जनवरी 2015 तक मेयर, डिप्टी मेयर व पार्षद मानदेय ले चुके हैं. मेयर को प्रति माह दस हजार, डिप्टी मेयर को प्रतिमाह नौ हजार व पार्षद को प्रति माह सात हजार रुपया मानदेय मिलता है. केंदुआ क्षेत्र के एक पार्षद का निधन पिछले साल हो गया था.
बोर्ड में योजना पारित होती है लेकिन धरातल पर नहीं उतरती: पार्षदों की मानें तो बोर्ड में योजना तो पारित होती है लेकिन धरातल पर नहीं उतरती. बोर्ड सिर्फ निर्णय लेता है. अनुपालन कराना अधिकारी का काम है. अनुपालन हो रहा है या नहीं, यह देखना मेयर का काम है. लेकिन दोनों सिस्टम फेल होने के कारण न तो योजना का सही से क्रियान्वयन हुआ और ना ही घोटालेबाजों पर कार्रवाई हुई.
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