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खूब चाव से सजाते थे रंगोली: ज्योति व्यास

धनबाद . हर इंसान के बचपन की दीवाली खास होती है. दुर्गा पूजा खत्म हुई नही की घर की साफ सफाई प्रारंभ हो जाती थी. मां के साथ मिलकर हम सभी भाई बहन घर का हर कोना साफ करते थे. सफाई करते बहुत सा खोया सामान जैसे स्कूल बेल्ट, बैच, बॉल, ई़यर रिंग मिल जाया […]

धनबाद . हर इंसान के बचपन की दीवाली खास होती है. दुर्गा पूजा खत्म हुई नही की घर की साफ सफाई प्रारंभ हो जाती थी. मां के साथ मिलकर हम सभी भाई बहन घर का हर कोना साफ करते थे. सफाई करते बहुत सा खोया सामान जैसे स्कूल बेल्ट, बैच, बॉल, ई़यर रिंग मिल जाया करते था. जिसे पाकर हम खुश होते थे. कई बार तो सिक्का भी मिलता था. धनतेरस के दिन से ही हमारा घर जगमगा उठता था. मां नये बर्तन खरीदती थी. दीवाली के दिन खूब सवेरे जगते थे. मुझे रंगोली बनाना बहुत अच्छा लगता था. मैं घर सजाने और रंगोली बनाने में व्यस्त हो जाती थी. पूजा घर के रंगोली में माता लक्ष्मी और गणपति महाराज का स्थान सबसे पहले होता था. घर के मुख्य द्वार पर सफेद खल्ली से अल्पना बनाते थे जो महीनों तक वैसे ही बना रहता था. संध्या में दीये जलाकर छत और घर के मुख्य स्थान पर रखती थी. पटाखों से मुझे डर लगता था. पूजा समाप्त होने के बाद माता-पिता के साथ घर के आंगन में पटाखे छुड़ाती थी. मैं फुलझड़ी, रस्सी और गुलकंद छुड़ाकर खुश होती थी. मेरे छोटे भाई बहन बम, रॉकेट छुड़ाते थे. मुझे इन पटाखों से डर लगता था. ज्योति व्यास, जिलाध्यक्ष इनर व्हील क्लब धनबाद.

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