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..और यादवपुर हाइस्कूल को नहीं मिला प्लस टू का दरजा

धनबाद: कमेटी बनने के बाद स्थल चयन के विवाद में फंसा प्रस्तावित कॉलेज का मुद्दा केवल चरचा का विषय बना रहा. किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. लिहाजा एडमिशन के सीजन में मुद्दा गरम हो जाता है. पूरे थाना क्षेत्र में एक मात्र सरकारी हाइस्कूल है गांधी स्मारक आदिवासी उच्च विद्यालय यादवपुर. वहां के […]

धनबाद: कमेटी बनने के बाद स्थल चयन के विवाद में फंसा प्रस्तावित कॉलेज का मुद्दा केवल चरचा का विषय बना रहा. किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. लिहाजा एडमिशन के सीजन में मुद्दा गरम हो जाता है. पूरे थाना क्षेत्र में एक मात्र सरकारी हाइस्कूल है गांधी स्मारक आदिवासी उच्च विद्यालय यादवपुर. वहां के ग्रामीणों ने अपनी जमीन दान में देकर इस स्कूल की शुरुआत 1961 में की. वरीय अधिवक्ता व जमीन दाता के परिजन कामदेव शर्मा बताते हैं कि श्रुतिकीर्ति देव्या, रामशरण दशौंधी, रामकुमार दशौंधी व प्रयाग राज दशौंधी ने मिल कर कुल 10 एकड़ 76 डिसमिल जमीन दी. मुर्राडीह पंचायत के तत्कालीन मुखिया सीपी शर्मा इसके संस्थापक अध्यक्ष बने, जबकि संस्थापक सचिव रामकुमार दशौंधी. विद्यालय काफी फला फूला. इसका सिलसिला अभी भी जारी है. सरकारी मान्यता भी मिली. वर्ष 1966-67 में वर्ग आठ व नवम की मान्यता मिली. फिर 1976 में मैट्रिक तक की. इलाके में एक ही विद्यालय रहने के कारण इसे आगे बढ़ने में कोई परेशानी नहीं हुई. इसी बीच जब एके राय सांसद बने तो यहां चार चांद लग गया. उन्होंने अपने सांसद मद की एक वर्ष की सारी राशि इस विद्यालय को दे दी, जिससे कमरे बनाये गये.

वर्ष 2005 में राज्य सरकार ने फैसला लिया कि हर प्रखंड के एक उच्च विद्यालय को प्लस टू बना कर कॉलेज की कमी को दूर की जायेगी, लेकिन यह विडंबना ही कहिए कि इसमें भी काफी उपेक्षा की गयी. बरवाअड्डा के लोगों ने इस विद्यालय को प्लस टू बनाने की मांग रखी, तो खूब राजनीति हुई. अलबत्ता तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी ने सरकार को विशेष नोट लिख कर भेजा कि यह विद्यालय प्लस टू होने की सारी अहर्ताएं पूरी करता है. प्रखंड में किसी विद्यालय के पास इतनी जमीन नहीं है.

लोग उग्र हो गये. काफी आंदोलन हुआ. तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रदीप यादव से मिल कर स्मारपत्र सौंपा गया. प्रखंड से लेकर जिला मुख्यालय तक प्रदर्शन किया गया. बच्चे भी सड़क पर उतर आये. उस समय फूलचंद मंडल को भाजपा ने टिकट नहीं दिया था. वह विधायक नहीं थे. राजकिशोर महतो थे विधायक. प्लस टू के लिए स्थानीय विधायक की अनुशंसा सरकार ने मांगी. बकौल कामदेव शर्मा राजकिशोर महतो ने यादवपुर की अनुशंसा नहीं की और लोगों की मांग पूरी नहीं हुई.

फूलचंद ने आंदोलनरत कमेटी को साथ देने की बात कही. समय बदला. फिर विधायक-सांसद भी बदले. लेकिन नहीं बदला सिर्फ इलाके का शैक्षणिक माहौल. जो लोग जीत कर आये, उन्हें भी नहीं लगा कि यादवपुर को प्लस टू का दरजा दिला कर बरवाअड्डा में कॉलेज की कमी को पूरा किया जाये.
(क्रमश:)

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