14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

धनबाद : 125 से अधिक गांवों में खेती बंद

कृषि के प्रति धनबाद जिले के लोगों का रुझान घटा, जमींदार भी खरीद कर खा रहे अनाज नारायण चंद्र मंडल धनबाद : कोयला के साथ-साथ ‘धान’ भी धनबाद की पहचान रहा है. जिले के धनबाद नाम पड़ने के पीछे धान की खेती को भी एक कारण माना जाता है. लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान […]

कृषि के प्रति धनबाद जिले के लोगों का रुझान घटा, जमींदार भी खरीद कर खा रहे अनाज
नारायण चंद्र मंडल
धनबाद : कोयला के साथ-साथ ‘धान’ भी धनबाद की पहचान रहा है. जिले के धनबाद नाम पड़ने के पीछे धान की खेती को भी एक कारण माना जाता है. लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान तेजी से धान की खेती बंद होती गयी है. वर्तमान में धनबाद जिले के 125 से अधिक गांवों में खेती पूरी तरह बंद है. सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जहां केवल बहाल खेतों (जिस खेत में पानी इकट्ठा रहता है) की ही रोपनी हो रही है. जिन गांवों में धान की खेती पूरी तरह बंद है, उनमें नगर निगम क्षेत्र के अलावा गोविंदपुर, निरसा, एग्यारकुंड व बाघमारा के गांव भी शामिल हैं.
खेती के प्रति लोगों का रुझान घटने के कारण जिसके घर में 100-200 मन धान हुआ करता था, वे भी आज खरीद कर चावल खा रहे हैं. यह भी सच है कि झारखंड के दूसरे जिलों की तरह यहां के किसान भी पूरी तरह मॉनसून के भरोसे रहते हैं. सरकार की ओर से सिंचाई अादि की व्यवस्था नहीं के बराबर है. मगर धान की खेती बंद होने के मूल में प्राकृतिक व व्यवस्थागत कारणों के साथ-साथ अब कुछ सामाजिक व मानवीय कारण भी जुड़ गये हैं.
सनद रहे कि धान के अलावा यहां दूसरी फसल नहीं के बराबर लगती है. अलबत्ता मौसमी सब्जियां लगती हैं. हालांकि इन सब के बावजूद टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची, बलियापुर व केलियासोल के हर गांव में खेती हो रही है. यह बात अलग है कि वर्षा की कमी के कारण बाइद खेतों में रोपनी के प्रति लोगों का रुझान घटा है.
शहर से सटे गांव वालों को जमीन बेचने की फिक्र
गोविंदपुर प्रखंड के कल्याणपुर-बड़ा जमुआ पैक्स के मैनेजर सुशील महतो बताते हैं-ग्रामीणों पर आज जीटी रोड व शहर से सटे गांवों की सीएनटी फ्री जमीनों की खरीद-बिक्री का नशा चढ़ा हुआ है. जमीन दलालों की तूती बोल रही है.
तुरंत पैसे मिल रहे हैं. ऐसे में ग्रामीण अब खेती में परिश्रम करना नहीं चाहते. जमीन बेचकर अच्छा घर बना लेना. फिर शहर में जाकर काम कर पेट भरने भर पैसे कमा लेना ग्रामीणों की जीवनशैली बनती जा रही है. नतीजा गांव-के-गांव जमीन परती पड़ी हुई है. बंजर पड़ जा रहे खेतों का भी कुछ दिनों बाद हिसाब कर दिया जा रहा है.
एक रुपया किलो चावल खाकर रह रहे मस्त
बाघमारा प्रखंड के धारकिरो गांव निवासी बुजुर्ग कृषक दीपक तिवारी कहते हैं कि कोल बियरिंग के गांवों में जिनकी जमीन बीसीसीएल में गयी है, वे विस्थापित होकर नौकरी-चाकरी कर रहे हैं. वे चाह कर भी खेती नहीं कर पा रहे हैं.
कारण कोल डस्ट ने बाकी की जमीन को बंजर बना दिया है. सरकार यदि चरवाहा की व्यवस्था करे या फिर पीडीएस के माध्यम से बीपीएल को देने वाला चावल केवल जरूरतमंद को ही मिले, तो खेती के प्रति लोग पहले की तरह ध्यान देंगे. एक रुपये किलो चावल पाने की दशा में वे खेती की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. अन्य जरूरतों के लिए ये लोग मजदूरी के लिए शहर की ओर मुखातिब हो रहे हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें