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गिने-चुने तालाबों के सौंदर्यीकरण पर है जोर, पाताल में जा रहा पानी, उसे बचाने की परवाह किसी को नहीं

भू-जल को रिचार्ज करनेवाले तालाब खत्म होते जा रहे हैं और पानी पाताल में जा रहा है. लेकिन, इन्हें बचाने की पहल किसी स्तर पर नहीं हो रही है. पुराने और बड़े तालाबों पर अतिक्रमण की जांच की बात तो होती है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती. हां! जनप्रतिनिधि, विधायक, मंत्री तालाबों के सौंदर्यीकरण की योजना […]

भू-जल को रिचार्ज करनेवाले तालाब खत्म होते जा रहे हैं और पानी पाताल में जा रहा है. लेकिन, इन्हें बचाने की पहल किसी स्तर पर नहीं हो रही है. पुराने और बड़े तालाबों पर अतिक्रमण की जांच की बात तो होती है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती. हां! जनप्रतिनिधि, विधायक, मंत्री तालाबों के सौंदर्यीकरण की योजना बनाकर लोगों की सहानुभूति बटोरने का प्रयास जरूर कर रहे हैं. हालांकि, ये योजनाएं भी कछुए की चाल से चल रही हैं, लेकिन ये बात फिर कभी. फिलहाल, असल समस्या भू-जलस्तर का नीचे जाना है. यहां बात केवल राजधानी रांची की नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की हो रही है. क्योंकि पानी की सम्स्या पूरे झारखंड में है.
भू-जल को रिचार्ज करनेवाले तालाब खत्म होते जा रहे हैं और पानी पाताल में जा रहा है. लेकिन, इन्हें बचाने की पहल किसी स्तर पर नहीं हो रही है. पुराने और बड़े तालाबों पर अतिक्रमण की जांच की बात तो होती है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती. हां! जनप्रतिनिधि, विधायक, मंत्री तालाबों के सौंदर्यीकरण की योजना बनाकर लोगों की सहानुभूति बटोरने का प्रयास जरूर कर रहे हैं. हालांकि, ये योजनाएं भी कछुए की चाल से चल रही हैं, लेकिन ये बात फिर कभी. फिलहाल, असल समस्या भू-जलस्तर का नीचे जाना है. यहां बात केवल राजधानी रांची की नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की हो रही है. क्योंकि पानी की सम्स्या पूरे झारखंड में है.
धनबाद के तालाबों पर भूमाफियाओं की नजर
हरीकरण ने पानी के परंपरागत स्रोत तालाब के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न कर दिया है. कभी पोखरों की नगरी रही धनबाद में अाज 1220 सरकारी तालाब बचे हैं. लगभग एक हजार निजी छोटे-बड़े तालाब भी हैं. जिला मत्स्य विभाग हर वर्ष तालाबों की बंदोबस्ती करता है. जिला मत्स्य पदाधिकारी एके सिंह के अनुसार, विभाग के पास पहले 1298 तालाब थे. इनमें से 101 सूख चुके हैं. इस वर्ष 1197 तालाबों की बंदोबस्ती विभाग द्वारा की गयी है. इसके अलावा जिला परिषद के पास 12 तालाब थे, जिनमें से तीन तालाबों में ही पानी है. शहर के बीचोबीच स्थित राजेंद्र सरोवर बेकार बांध में भी दो वर्षों से सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है. रेलवे की एक दर्जन से अधिक तालाब जिले के विभिन्न क्षेत्रों में हैं. कुछ तालाब की देख-रेख कृषि विभाग करता है. जिले के अधिकांश इलाके खासकर शहर से सटे क्षेत्रों में तालाबों को समतल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका जमीन माफियाओं की रही है. सरकारी एजेंसियों से सांठ-गांठ कर तालाब को सूखा दिया जाता है. फिर इसकी जमीन का उपयोग रास्ते के लिए किया जाता है. कहीं-कहीं तालाबों की जमीन पर मार्केट तक बन गये. तालाबों की संख्या कम होने से कोयलांचल में जलस्तर में लगातार कमी अा रही है.
तालाब भरकर बना दिया सोलर प्लांट व खनन ऑफिस
देवघर शहरी क्षेत्रों में तालाबों का अस्तित्व खतरे में है. देवघर नगर निगम क्षेत्र में अधिकांश तालाब को कभी सरकारी योजनाओं के नाम पर, तो कभी भू-माफिया द्वारा भरा जा रहा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पूरे जिले में सिर्फ 1657 तालाब बचे हैं. इसमें अधिकांश तालाब मत्स्य विभाग, भूमि संरक्षण व लघु सिंचाई विभाग के अधीन है. महज 39 तालाब ही नगर निगम क्षेत्र के अधीन है. 15 वर्ष पहले इसकी संख्या 52 थी. देवघर में सरकारी योजना के नाम पर भी सरकारी तालाब को भरा गया.
जलसार में एक तालाब को भर कर वहां सोलर प्लांट लगा दिया गया. पूरनदाहा मोहल्ले में सरकारी तालाब को भर कर खनन विभाग का आॅफिस बना दिया गया. अब तो जलसार में कई तालाबों को भर कर बहुउद्देश्यीय भवन बनाने की तैयारी चल रही है. बाबा मंदिर के समीप तो मानसरोवर तालाब पर ही क्यू कॉम्प्लेक्स का निर्माण करा दिया गया है.
शहरी क्षेत्रों में तेजी से फैलती आबादी की वजह से भू-माफियों ने झारखंड गठन के बाद कई सरकारी तालाबों को भर कर बेच डाला. यही वजह है कि देवघर में भूमि घोटाला भी उजागर हुआ. भूमि घोटाले की जांच में कई सरकारी तालाब को भरकर बेचने की रिपोर्ट भी आ चुकी है. हाल के दिनों चकश्रीमिश्र बांध मौजा में सरकारी तालाब भरने के दौरान मोहल्ले वासियों ने मानव श्रृंखला बनायी. तालाब को बचाने के लिए लोगों ने हाइकोर्ट में पीआइएल दाखिल किया, उसके बाद हाइकोर्ट ने तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराने का निर्देश प्रशासन को दिया.
गिरिडीह में 665 तालाब 512 से मिल रहा राजस्व
छले तीन वर्षों से तालाबों की हो रही मरम्मत व जीर्णोद्धार से गिरिडीह जिले के कई तालाबों में नयी जान आयी है. किसानों को सिंचाई की सुविधा का लाभ मिला है, तो सरकार का राजस्व भी बढ़ा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जिले में कुल 665 तालाब हैं. मत्स्य विभाग के पास 512 ऐसे तालाब हैं, जिससे राजस्व की वसूली हो रही है. ये तालाब जिले के अंचल कार्यालयों से विभाग को वर्ष 1990-92 में उपलब्ध कराये गये थे. इसके अलावा लघु सिंचाई विभाग ने वर्ष 2016 में 15 तालाब तथा वर्ष 2017 में 31 तालाबों का जीर्णोद्धार करवाया.
इस तरह जिले में सिंचाई व मत्स्य पालन के लायक कुल तालाबों की संख्या 558 है. इसके अलावा भूमि संरक्षण विभाग की ओर से इस वर्ष 45 सरकार और 45 निजी तालाबों का जीर्णोद्धार की योजना है, जिसमें 31 तालाबों की स्वीकृति मिल चुकी है. इसमें 28 तालाबों में कार्य चल रहा है. शेष का दस्तावेज तैयार किया जा रहा है.
जिला मत्स्य पदाधिकारी रितु रंजन कहती हैं कि जिले में 512 तालाबों से राजस्व की वसूली हो रही है. इन तालाबों में मत्स्य पालन हो रहा है. तालाब का आंकड़ा अंचल कार्यालयों के पास मौजूद रहता है. जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी दिनेश मांझी ने कहा कि 90 तालाबों के जीर्णोद्धार का कार्य इस वर्ष होना है. इनमें 45 सरकारी और 45 गैर सरकारी हैं.

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