- बुखार आने पर रक्त जांच करायें.
- रक्त जांच से पहले पेन किलर या दूसरी दवाइयां नहीं लें.
- बुखार होने पर पैरासिटामाल लिया जा सकता है.
- मलेरिया में संतरे का जूस फायदेमंद होता है.
- बुखार के कम होने पर ताजा फल का सेवन करना चाहिए.
- अपने घर के आसपास पानी नहीं जमा होने दें.
- बुखार होने पर डॉक्टर से संपर्क करें.
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धनबाद : मलेरिया के अति संवेदनशील छह गांव अब मुक्ति की ओर
धनबाद : मलेरिया को लेकर वर्षों से अति संवेदशील माने जाने वाली तोपचांची के तीन व टुंडी के तीन गांवों में बदलाव दिखने लगे हैं. वर्ष 2017 में इन गावों में मलेरिया पीड़ितों की संख्या काफी कम मिली है. इसका श्रेय विभाग मेडिकेेटेट मच्छरदानी को दे रहा है. यही कारण है कि तोपचांची के चलकरी, […]
धनबाद : मलेरिया को लेकर वर्षों से अति संवेदशील माने जाने वाली तोपचांची के तीन व टुंडी के तीन गांवों में बदलाव दिखने लगे हैं. वर्ष 2017 में इन गावों में मलेरिया पीड़ितों की संख्या काफी कम मिली है. इसका श्रेय विभाग मेडिकेेटेट मच्छरदानी को दे रहा है.
यही कारण है कि तोपचांची के चलकरी, चितरपुर व बेलमी और टुंडी के बलकुश, मनियाडीह व बांधडीह अब मलेरिया मुक्ति की ओर अग्रसर हो गये हैं. इतना ही नहीं वर्ष 2017 में जिले भर में मलेरिया के मात्र 384 मरीज मिले हैं.
1.29 लाख लोगों में बांटी गयी मच्छरदानी : वर्ष 2016 व 2017 के बीच धनबाद के 1.29 लाख लोगों के बीच मेडिकेटेट मच्छरदानी बांटी गयी है. वर्ष 2016 में तोपचांची व टुंडी प्रखंड के बीच 42007 लोगों में मच्छरदानी बांटी गयी. वहीं वर्ष 2017 में 82863 लोगों के बीच बाकी बचे प्रखंडों में वितरित की गयी. सभी मच्छरदानी आयातित हैं. इसकी खूबी है कि इसके लगाने के बाद आसपास भी मच्छर नहीं आते हैं.
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जानें मलेरिया को
मलेरिया मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है. यह मच्छर साफ पानी में ही प्रजनन करता है. मलेरिया रोग के लक्षण मच्छर के काटने के 10 से 12 दिनों के बाद दिखना शुरू होता है. मलेरिया को सामान्य इसे दो भागों में बांटा जाता है. पीएफ (प्लाज्मोडियम वाइवेक्स) को सबसे खतरनाक माना जाता है. इसकी दवा तत्काल नहीं शुरू होने पर 3 से 5 दिनों में जान जा सकती है. वहीं पीवी (प्लाज्मोडियम फेल्सिपेरम) मलेरिया में जान नहीं जाती है, लेकिन मरीजों को काफी परेशानी होती है. पीएफ झारखंड में सबसे ज्यादा पाये जाते हैं. धनबाद में यह तोपचांची व टुंडी में अधिक पाये जाते हैं. इसका कारण जंगल, दूषित पानी सहित कई कारण माने जाते हैं.
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