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राम-रावण की लड़ाई, धर्म-अधर्म की लड़ाई : व्यासानंद

देवघर:अधर्म पर धर्म की विजय ही रामायण का सार है. राम धर्म का प्रतीक और रावण अधर्म का प्रतीक हैं. उक्त बातें महर्षि मेंहीं ब्रह्म विद्यापीठ हरिद्वार के स्वामी व्यासानंद जी महाराज ने कही. वे केके स्टेडियम में अायोजित श्रीराम कथा के अंतिम दिन प्रवचन दे रहे थे. उन्होंने पूरे नौ दिनों तक पूरे रामायण […]

देवघर:अधर्म पर धर्म की विजय ही रामायण का सार है. राम धर्म का प्रतीक और रावण अधर्म का प्रतीक हैं. उक्त बातें महर्षि मेंहीं ब्रह्म विद्यापीठ हरिद्वार के स्वामी व्यासानंद जी महाराज ने कही. वे केके स्टेडियम में अायोजित श्रीराम कथा के अंतिम दिन प्रवचन दे रहे थे. उन्होंने पूरे नौ दिनों तक पूरे रामायण को सरस रूप से प्रस्तुत किया. कथा के अंतिम दिन उत्तर कांड पूरा कर रामराज्य की स्थापना तक करायी. उन्होंने कहा कि उत्तर का अर्थ होता है अंतिम, उत्तीर्ण व मोक्ष. हमारे जीवन में जो पाप रूपी लंका नगरी में रावण का राज्य है.

उसका अंत कर देना है. राम-रावण की लड़ाई वास्तव में धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई है. राम-रावण का युद्ध तो त्रेता युग में हुआ. कथा में अध्यात्मिक रहस्य है. वास्तविक में व्यक्ति के अंदर धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष चल रहा है. युद्ध में अपनी वानर, भालू की सेना लेकर भगवान ने लंका पर चढ़ाई की. अनेकों को राक्षसों का संहार किया.

अंत में मेघनाथ, कुंभकरण, और रावण का वध हुआ. श्रीराम ने सीता को लंका से मुक्त कराया. विभीषण को लंका का राजा बनाया. राम अयोध्या आते हैं. यहां भव्य स्वागत होता है. कथा के समापन पर पंडा धर्मरक्षिणी सभा व शीतला माता पूजा समिति की ओर से व्यासानंद महाराज को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम को सफल बनाने में समिति के श्रवण सुल्तानिया, सचिव प्रकाश कुमार अग्रवाल, शिवनंदन मंडल, कृष्णा अग्रवाल, रघुवीर सिंह, सुनील कुमार, लक्ष्मण वर्णवाल, श्याम सुल्तानिया, मनोज सिंह, कांता बाई, बमशंकर वर्णवाल, राजेश श्रृंगारी, अनिल कुमार आदि ने सराहनीय भूमिका निभायी.

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