… तो लगता है दीपावली आ गयी कचरे चुनने वाले बच्चों ने कहा- जब शहर में गूंजने लगती है पटाखों की आवाजफोटो सुभाष के फोल्डर-2 में छोटू, डॉली, शुभम के नाम से रिनेम-कचरा चुनने और बेचने तक सीमित जिंदगी -दूर से ही देखते हैं दीपावली संवाददाता, देवघरराजा बगीचा के शिशु निकेतन स्कूल के निकट झोपड़पट्टी में रहनेवाले शुभम, छोटू, डॉली आदि दर्जनों बच्चे-बच्चियों को दीप व दीपावली की कोई जानकारी नहीं. वे जानना भी नहीं चाहते हैं. कचरा चुनना उनकी नियति बन गयी है. दिन भर कूड़ा-कचरा चुन कर शाम को उसे बेचते हैं और इसी से दो जून की रोटी की व्यवस्था करते हैं. शहर के अन्य बच्चों की तरह ये बच्चे भी पटाखे छोड़ना चाहते हैं. मिठाई का स्वाद लेना चाहते हैं. लेकिन पैसे के अभाव में मन मारना पड़ता है. दूसरे बच्चों को खुशी मनाते देख कर मन छोटा हो जाता है. दीपावली में बच्चे-बूढ़े सभी दिन में पूजा-पाठ करेंगे. शाम में मिठाई खायेंगे. जबकि रात में पटाखे छोड़ कर पर्व का मजा उठायेंगे. इन बच्चों को भी किसी मसीहा की तलाश है, जो उनके जीवन में कुछ रोशनी ला सके. प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ बच्चों से की गयी बातचीत के मुख्य अंश छोटू कुमार ने कहा कि कचरा चुनने के लिए प्रतिदिन सुबह जल्द जगना पड़ता है. देर होने से दूसरे लोग कचरा चुन लेते हैं और खाली हाथ घर लौटना पड़ता है. …………………………………………………डॉली कुमारी ने कहा कि दीपावली पर्व की कोई पूर्व जानकारी नहीं होती कि यह किस दिन मनायी जायेगी. पटाखे की आवाज शुरू होती है, तो समझ जाते हैं कि दीपावली आ गयी है. …………………………………………………………….शुभम कुमार ने कहा कि पर्व नजदीक आने पर मिठाई खाने व पटाखे छोड़ने की इच्छा मन में होती है. लेकिन इसके लिए पैसे नहीं है.
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… तो लगता है दीपावली आ गयी कचरे चुनने वाले बच्चों ने कहा- जब शहर में गूंजने लगती है पटाखों की आवाजफोटो सुभाष के फोल्डर-2 में छोटू, डॉली, शुभम के नाम से रिनेम-कचरा चुनने और बेचने तक सीमित जिंदगी -दूर से ही देखते हैं दीपावली संवाददाता, देवघरराजा बगीचा के शिशु निकेतन स्कूल के निकट झोपड़पट्टी […]
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