देवघर: देवघर भूमि घोटाले की भनक मोहनपुर अंचल के बैजनाथपुर मौजा स्थित छत्तीसी-बत्तीसी की जमीन से लगी. बताया जाता है कि बैजनाथपुर मौजा की यह 16.70 एकड़ जमीन गोचर व सरकारी बांध खतियान में दर्ज है. लेकिन भू-माफिया व अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी कागजात तैयार कर जमीन की रजिस्ट्री करा दी गयी थी.
इसी आधार पर बत्तीसी तालाब को काफी हद तक भरकर घेराबंदी भी शुरू कर दी गयी थी. यह मामला उजागर होने के बाद तत्कालीन मुख्य सचिव एसके चौधरी ने तत्कालीन डीसी मस्तराम मीणा को छत्तीसी-बत्तीसी की जमीन संबंधित जांच का निर्देश दिया था. तत्कालीन डीसी ने जांच कमेटी गठित कर जांच करवायी तो छत्तीसी-बत्तीसी की जमीन गोचर व सरकारी जमीन के अलावा कई अन्य मौजा में जमीन के घोटाले सामने आये. उसके बाद जांच की फेहरिस्त में धीरे-धीरे 12 वर्षो से चल रही घोटाला सामने आते गये. उस समय डीसी ने छत्तीसी-बत्तीसी में की गयी घेराबंदी को भी तोड़वाया था व डीसी ने मुख्य सचिव को भेजी गयी जांच रिपोर्ट में भी बैजानाथपुर मौजा स्थित 16.70 एकड़ सरकारी व गोचर जमीन का उल्लेख किया था.
उसके बाद सरकार ने इसकी निगरानी जांच का आदेश दिया था. लेकिन देवघर भूमि घोटाला की सीबीआइ जांच की आंच छत्तीसी-बत्तीसी तक नहीं पहुंची. छत्तीसी-बत्तीसी की जांच सीबीआइ दायरे से बाहर रही. कुल मिलाकर जहां से देवघर भूमि घोटाला की भनक लगी, वह जगह सीबीआइ जांच से अछूता रह गया. बताया जाता है कि निगरानी की टीम ने ही अपनी जांच रिपोर्ट में छत्तीसी-बत्तीसी की सरकारी व गोचर जमीन का उल्लेख नहीं किया था. इस कारण जमीन को फर्जी दस्तावेज के आधार पर वैध करार देने वालों में शामिल अधिकारी व भू-माफियाओं तक सीबीआइ नहीं पहुंच पायी.
16.70 एकड़ जमीन पर हुआ था करोड़ों का कारोबार
बैजनाथपुर मौजा में छत्तीसी-बत्तीसी की कुल जमीन 16.70 एकड़ है. भूमाफियाओं ने फर्जी कागजात तैयार कर इसे अजिर्त बसौड़ी (एलए) जमीन घोषित कराया. इसमें कर्मियों व अधिकारियों की अहम भूमिका रही. उसके बाद इस जमीन को भू-माफियाओं ने पहले अपने रिश्तेदारों के नाम से एनओसी निकलवायी. एनओसी के जरिये अलग-अलग लोगों के नाम से जमीन की रजिस्ट्री करायी गयी. इसमें शहर के चर्चित भू-माफिया व ओहदेदार व्यक्तियों ने पैसा लगाया व करोड़ों का कारोबार हुआ. पैसा लगाने वाले भू-माफियाओं ने अलग-अलग सिंडिकेट के पास करोड़ों में जमीन की डील की. बताया जाता है कि जमीन की रजिस्ट्री में भू-माफियाओं व ओहदेदारों ने खुद अपना नाम कागज पर आगे नहीं किया, लेकिन अपने घर व बिजनेस में काम करने वाले कर्मियों के नाम से जमीन की रजिस्ट्री करायी. जिन कर्मियों के नाम से रजिस्ट्री हुई उसमें अधिकांश की बाइक पर चलने की हैसियत नहीं थी. लेकिन उनके नाम से लाखों-करोड़ों की जमीन की रजिस्ट्री हो गयी.
‘ राज्य सरकार की निगरानी टीम ने जिस केस की फाइल दी है. सीबीआइ ने उसी जमीन की जांच की है. हो सकता है कि निगरानी के केस नंबर में इस जमीन की फाइल नहीं होगी. फिलहाल इसकी मुङो जानकारी नहीं है. बावजूद अगर ऐसा मामला छूट गया है तो प्रोपर चैनल के माध्यम से सीबीआइ इस जमीन को भी जांच के दायरे में ला सकती है’
– पीके मजी, एसपी, सीबीआइ, धनबाद