ये दोनों पथ, बिंदु तथा मूलाधार चक्र में मिलते हैं. इन्हें समूचे विश्व के योग साधक जानते हैं. विशेष रूप से रहस्यवादी तथा आरोग्य-प्रदाता जो आक्यूपंक्चर की तकनीकों का उपयोग करते हैं, इन पथों के अच्छे जानकार होते हैं. आक्यूपंक्चर में आरोहण को ‘यांग’ तथा अवरोहण को ‘यिंग’ कहते हैं. किसी आरामदायक आसन विशेष रूप से सिद्धासन या सिद्धयोनि आसन में बैठ जाइये. सिर, गर्दन तथा मेरुदंड सीधे रखिये. आंखें बंद करके पूरे शरीर को शिथिल कीजिये. श्वास-प्रश्वास की गति सामान्य रखते हुए मूलाधार चक्र पर चेतना को केंद्रित कीजिये. अब चेतना को आरोहण के अतीन्द्रिय से ऊपर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत विशुद्धि से होते हुए बिंदु तक लाइये. आरोहण के मार्ग में मिलने वाले सभी चक्रों का नाम भी मानसिक रूप से दुहराइये- आज्ञा विशुद्धि, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मूलाधार. यह चेतना-संचार का एक चक्र हुआ. इसके तुरंत बाद दूसरा चक्र प्रारंभ कीजिये. रास्ते में मिलने वाले सभी चक्रों का नाम मानसिक रूप से आरोहण तथा अवरोहण के समय दुहराइये.
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प्रवचन ::::: बिंदु व मूलाधार चक्र को सभी साधक जानते हैं
ये दोनों पथ, बिंदु तथा मूलाधार चक्र में मिलते हैं. इन्हें समूचे विश्व के योग साधक जानते हैं. विशेष रूप से रहस्यवादी तथा आरोग्य-प्रदाता जो आक्यूपंक्चर की तकनीकों का उपयोग करते हैं, इन पथों के अच्छे जानकार होते हैं. आक्यूपंक्चर में आरोहण को ‘यांग’ तथा अवरोहण को ‘यिंग’ कहते हैं. किसी आरामदायक आसन विशेष रूप […]
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