सारवां : प्रशासनिक उपेक्षा व सुविधाओं के अभाव में सारवां के महतोडीह मडैया टोला के लौह कारीगर बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. परिवार का पेट पालने व अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए दिन भर आग की भट्ठी में लोहे के साथ अपना शरीर तपाना इनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है.
कांटी से लेकर लोहे के सभी सामान बनाने वाले इन कारीगरों की जिंदगी काले धुएं तक ही सिमट कर रह गयी है, जहां अंधेरे के सिवाय कुछ भी नहीं है. इन लौह कारीगरों को अबतक सुविधाएं नहीं मिल पायाी है. लोहे को अलग-अलग रूपों में ढालने के बाद भी लोहे के सामानों की सही कीमत नहीं मिल पा रही है.
दिन ब दिन लोहे की कीमत बढ़ती गयी पर इनकी आय सीमित ही रह गयी है. एक साल पहले की तुलना में कच्चा लोहे की कीमत बढ़ गयी. लेकिन, जब उसका सामान बनाकर बाजार में बेचने जाते हैं, तो उसमें लगी मजदूरी के साथ कोयला आदि पर खर्च जोड़ने पर दिन भर की मजदूरी भी नहीं निकल पाती है.
पुश्तैनी धंधे से अलग होने को विवश
सुरेश शर्मा, टुली शर्मा, सरलू शर्मा, मुकेश शर्मा, नंदु शर्मा, संजय शर्मा, सिकंदर शर्मा, मनु शर्मा, सुनील शर्मा, बिंदु शर्मा, लक्ष्मण शर्मा, भुदेव शर्मा आदि ने बताया कि लौह सामान का निर्माण हमारी लोगों का पुश्तैनी धंधा है. लेकिन, अब तो हालात ऐसे हैं कि इस पुश्तैनी धंधे से दूर होकर कोई नया काम शुरू करना मजबूरी हो रही है. कर्ज लेकर काम करना पड़ता है. सही कीमत नहीं मिलने पर कर्ज चुकाना भी मुश्किल हो गया है. पूंजी भी डूब गयी है. सरकार अगर लौह कारीगरों पर ध्यान दे तो शायद हमारी जिंदगी में बदलाव आ सकेगा.
कहते हैं कारीगर
जब से होश संभाला तब से ही आग की भट्ठी में अपना तन जला रहे हैं. लेकिन पहले से भी नीचे चले जा रहे हैं. सरकार कर्मकारों को सहायता उपलब्ध कराये एवं पुस्तैनी धंधे से जुडे लोगों को बचायी जाये.
सुरेश शर्मा
महंगाई की मार ने कर्मकारों को बर्बाद कर दिया. कच्चा लोहा महंगा होने के कारण पूंजी निकालना भी मुश्किल हो गया. सामान बना कर बाजार में बेचने के बाद ले देकर बराबर हो जाता है.
टुली शर्मा
भले ही बोल व सुन नहीं सकते लेकिन, हुनर से लवरेज पप्पू शर्मा
ऊपर वाले ने भले ही 30 वर्षीय पप्पू शर्मा से बोलने व सुनने की शक्ति ले ली हो, पर उसे ऐसा हुनर दे दिया है जिससे वह अपनी जिंदगी को ईश्वर से मिली क्षमता के बल पर चला रहा है. सारवां पंचायत के महतोडीह मडई टोला निवासी दिव्यांग पप्पू शर्मा अपनी विलक्षण प्रतिभा से परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.
परिवार वालों ने बताया कि, पप्पू जन्म से ही दिव्यांग हैं, जो न तो बोल सकता है और न ही कुछ सुन सकता है, लेकिन प्रतिभा का धनी है. बचपन से पिता को काम करता देख उसकी भी दिलचस्पी लोहा का सामान बनाने में बढ़ती चली गयी. कुछ बड़ा हुआ तो पिता के कार्य में हाथ बंटाने लगा. धीरे-धीरे वह दक्ष होते गये.
पिता के गुजरने के बाद अब पप्पू लोहे को गलाकर दुकान में लोहे के कुदाल, खुर्पी, टांगी, गेंता, खेती के हल का फल, बैलगाड़ी का चक्का, कुरसी, लोहे का बैंच, कैंची, छुरी, गेट, नक्काशीदार ग्रील आदि इतनी कुशलता से बनाता है कि अच्छे अच्छे कारीगर अचरज में पड़ जाते हैं. पप्पू कहते हैं कि हिम्मत व जज्बा होना चाहिए, जिससे बड़ा काम भी आसान हो सकता है. पप्पू कहते हैं कि उन्हें पेंशन तो मिलता है पर यह नाकाफी है. अपनी मेहनत के बल पर आज परिवार चला रहे हैं.