देवघर: स्पेशल कोर्ट में अब तक दलित प्रताड़ना के 127 मामले दाखिल हुए हैं. जनवरी 2017 से लेकर जून तक छह माह के ये आंकड़े हैं. प्रतिमाह 20 से भी अधिक मामले कोर्ट पहुंच रहे हैं. इसमें सबसे अधिक 119 अनुसूचित जाति के लोगों का ग्राफ है. जबकि अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के मामले महज आठ हैं.
ज्यादातर मुकदमे दलित महिलाओं ने दाखिल किये हैं व मारपीट करने व छेड़खानी का आरोप लगाया है. कुछ मामले चापानल व कुआं में पानी भरने को लेकर हुए हैं. दो मामले चापानल से पानी लेने की मनाही करने व छुआने की बात को लेकर दाखिल किये गये हैं. दर्ज मुकदमे जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों के हैं.
केस स्टडी-एक
जसीडीह थाना के गिधनी गांव की एक महिला ने गांव के मुन्ना सिंह, हरेंद्र सिंह, राजेश सिंह व मुकेश सिंह को आरोपित किया है. कहा है कि परिवादिनी दलित समुदाय से आती है. आरोपितों ने बुरी नीयत से अपहरण का प्रयास किया. महिला ने विरोध किया तो उन्हें जातिसूचक शब्द लगा कर गाली दी. इस दौरान घर से कीमती सामान लेकर चल दिया. साथ ही थाना पुलिस न जाने की धमकी दी. इसे पंजीकृत कर लिया गया है. मामले का ट्रायल जारी है.
केस स्टडी – दो
मधुपुर थाना के सपहा गांव निवासी शुकदेव तुरी ने मधुपुर के डंगाल पाड़ा निवासी नंदा यादव व बली यादव को आरोपित करते हुए मुकदमा दाखिल किया है. कहा है कि परिवादी गरीब है जो दलित समुदाय से आते हैं. आरोपितों ने परिवादी के साथ मामपीट की और जान से मारने की धमकी दी है. इस मामले की सुनवाई चल रही है.
क्या है दलित उत्पीड़न अधिनियम
किसी भी दलित समुदाय के सदस्यों को अपमानित करने की घटना पर राेक लगाने के उद्देश्य से इस अधिनियम को 1989 से प्रभाव में लाया गया है. इसे अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति निवारण अधिनियम के नाम से जाना जाता है. इसकी धाराएं गैर जमानती होती हैं.
स्पेशल कोर्ट में होती है सुनवाई
एससीएसटी एक्ट से संबंधित विभिन्न प्रकार के मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट गठित है. सिविल कोर्ट परिसर में इसके लिए सेशन जज एक को प्रभार दिया गया है. जो दलित प्रताड़ना के मामलों की सुनवाई कर रहे हैं. दलित प्रताड़ना के अधिकांश मामलों को संबंधित थाने को प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश के साथ न्यायालय द्वारा भेज दिया जाता है. जहां पर प्राथमिकी दर्ज कर स्पेशल कोर्ट में भेज दिया जाता है.