इटखोरी : चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड की टोनाटांड़ पंचायत का पृथ्वीपुर गांव आज भी लक्ष्यद्वीप के टापू से कम नहीं है. गांव में जाने के लिए न तो सड़क है, न बिजली और न ही शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है. गर्भवती महिलाएं प्रसव होने के दो माह पहले गांव छोड़ कर मायके चली जाती हैं तथा सुरक्षित प्रसव होने के कई माह बाद लौटती हैं. इटखोरी से आठ किमी दूर बसा यह गांव तीन दिशाओं में घने जंगलों से और एक दिशा में मोहाने नदी से घिरा है.
गांव की कुल आबादी लगभग 300 और कुल 38 घर हैं. इनमें भुइयां जाति के 26, मुस्लिम समुदाय के आठ, यादव के दो और रविदास जाति के दो घर हैं. कुल मतदाता 150 हैं. देश की आजादी के 72 साल बाद भी ग्रामीण मौलिक व आधारभूत सुविधाओं से वंचित हैं. लोग वन विभाग के रहमोकरम पर गांव से बाहर निकलते व प्रवेश करते हैं. संकरी पगडंडियों पर चलकर आते-जाते हैं,
वह भी वन क्षेत्र में आता है. गांव में मात्र दो चापानल है, वह भी काफी पुराने हैं. दो दर्जन से अधिक युवक व युवतियां अविवाहित हैं. बीमार व्यक्ति की मौत अस्पताल ले जाने से पहले ही हो जाती है.
क्या कहते हैं ग्रामीण
पृथ्वीपुर गांव के लोगों का कहना है कि हम लोग आज भी आदिम युग में जी रहे हैं. नाजिर मियां ने कहा कि 10 साल से बिजली के पोल लगे हुए हैं, लेकिन अब तक बिजली नहीं जली है. हमलोग लालटेन जलाकर रात गुजारते हैं.
जहाना खातून ने कहा कि गांव में सड़क नहीं रहने से गर्भवती महिलाएं अपने मायके चली जाती हैं. बेबी खातून ने कहा कि सड़क व बिजली की व्यवस्था नहीं होने से बच्चों की शादी भी नहीं हो रही है. रबीना खातून व गफूरी खातून ने कहा कि बिजली की व्यवस्था नहीं रहने से जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है. फूचन भुइयां व मोती भुइयां ने कहा कि पैदल ही आठ किलोमीटर दूर इटखोरी बाजार जाते हैं.
इनकी हो चुकी है मौत: गांव में बरसात में बाइक से भी चलना मुश्किल हो जाता है. इलाज के अभाव में एक साल पहले प्रीति कुमारी और दो साल पहले साजन कुमार की मौत हो गयी थी.