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हर्बल पायलट प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों रुपये बरबाद

पेटरवार की हर्बल पायलट प्रोजेक्ट सरकारी उदासीनता के कारण बंद आवंटित राशि भी नहीं हो सकी खर्च बसंत मधुकर बोकारो : पेटरवार स्थित राज्य का पहला हर्बल पायलट प्रोजेक्ट सरकारी उदासीनता के कारण विफल हो गया. इस पर कई करोड़ रुपये बरबाद हो गये. कभी सैकड़ों दुर्लभ औषधीय गुणों वाले पौधों की नर्सरी अब मृत […]

पेटरवार की हर्बल पायलट प्रोजेक्ट सरकारी उदासीनता के कारण बंद
आवंटित राशि भी नहीं हो सकी खर्च
बसंत मधुकर
बोकारो : पेटरवार स्थित राज्य का पहला हर्बल पायलट प्रोजेक्ट सरकारी उदासीनता के कारण विफल हो गया. इस पर कई करोड़ रुपये बरबाद हो गये.
कभी सैकड़ों दुर्लभ औषधीय गुणों वाले पौधों की नर्सरी अब मृत प्राय हो चुकी है. इसे जिंदा करने के लिए किसी सरकार ने प्रयास करने की जरूरत नहीं समझी.
तत्कालीन बोकारो वन प्रमंडल पदाधिकारी एमपी सिंह तथा केंद्रीय वन पर्यावरण सुरक्षा सह प्रबंधन समिति के अध्यक्ष जगदीश महतो की पहल पर बाबूलाल मरांडी की सरकार में वन मंत्री रहे यमुना सिंह ने पेटरवार हर्बल पायलट प्रोजेक्ट को वर्ष 2001 में स्वीकृति दी थी.
शुरुआत में सरकार का ध्यान इस प्रोजेक्ट पर था. दो वित्तीय वर्ष में विकास के लिए राशि भी आवंटित हुई थी. प्रोजेक्ट के तहत दुर्लभ वन औषधि केंद्र की स्थापना के साथ जड़ी-बूटी का प्रशिक्षण देकर ग्रामीणों को वैद्य के रूप में दक्ष बनाना उद्देश्य था. इसकी उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने इसका विस्तार राज्य के अन्य जिलों में भी करने की बात कही थी.
लेकिन विस्तार की बात तो दूर, इस एकमात्र प्रोजेक्ट को भी सरकार जिंदा नहीं रख सकी. आवंटित राशि भी खर्च नहीं हो पायी और राशि लैप्स हो गयी. इसके बाद नर्सरी के दुर्दिन की शुरुआत हो गयी.
क्या था योजना का उद्देश्य
जंगल से संबंधित गांवों में रहने वाले ग्रामीणों व संयुक्त वन प्रबंधन समिति के सदस्यों को जंगलों में बिखरे पड़े हजारों औषधीय पौधों की पहचान, उसके उपयोग व गुणों की जानकारी देना इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य था. वन औषधी की खेती कर उन्हें आर्थिक रूप से सबल बनाना था. इस पायलट प्रोजेक्ट में ग्रामीणों व समिति के सदस्यों को बकायदा प्रशिक्षण की व्यवस्था थी. 15-15 दिनों के अंतराल पर दो दिन प्रशिक्षक श्याम बिहारी तिवारी प्रशिक्षण देते थे. दो वर्षों में लगभग 235 लोगों को प्रशिक्षित भी किया गया.
प्रयास नहीं हुआ सफल
बाद के दिनों में वन समिति के पदाधिकारियों ने इस प्रोजेक्ट को जिंदा कराने के लिए अपने स्तर से प्रयास किया. जगदीश महतो आदि ने मंत्री व वरीय पदाधिकारियों से मुलाकात भी की. इसके परिणामत: कुछ राशि खर्च कर इसे जीवित करने का प्रयास भी हुआ, लेकिन बाद में अधिकारियों के रुचि नहीं लेने के कारण इसकी दुर्दशा हो गई.

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