बोकारो: यह वही तलगड़िया से सियालजोरी जाने वाली सड़क थी. पर, आज इसका परिचय बदला हुआ था. अंदाज में तल्खी थी. जोश था. खून खराबा को उतारू भीड़ थी. हर आने-जाने वाले पर ऐसे नजर रखी जा रही थी जैसे किसी दूसरे देश से घुसपैठिये आने वाले हो. हाथों में फरसा, तलवार, लाठी और लाल झंडा का साया सब मिल कर ऐसा माहौल बना रहे थे, जैसे आज ही सब खत्म होना है.
समय : 10.30 सुबह. जगह : बाधाडीह. इलेक्ट्रोस्टील के करीब दो हजार कर्मी अपने प्लांट के इडी आरएस सिंह की अगुआई में शांति मार्च करने को तैयार थे. पर, पुलिस ने रोक रखा था. वहां से जैसे ही आगे बढ़ा अलकुसा में लाल झंडे की पहली तैयारी दिखी. वहां सड़क पर कंपनी के लोगों का इंतजार कर रहे लोगों में ऐसा कोई नहीं दिखा, जिसके हाथ खाली हो. जंग खायी तलवार देख कर तो अच्छे-अच्छों की छुट्टी हो जाये. यही नजारा आगे भी कई जगहों पर दिखा. अगर कोई आंखों से भी रुकने का इशारा करता तो झट से बाइक खड़ी कर देता और परिचय बताता. डर इस बात का था कि कहीं परिचय देने में देर हुई, तो पिटाई न हो जाये. जगह-जगह लाल झंडा लहरा रहा था. ट्रेकर भर-भर कर लोग सर पर लाल कपड़ा बांधे कंपनी गेट की तरफ धरना स्थल पर जा रहे थे.
लाल सलाम- लाल सलाम का नारा बुलंद था. सड़क के बीचों-बीच लाल झंडा का लगा होना. तेज धूप और फैला सन्नाटा कुछ होली की दोपहर वाला सन्नाटा सा लग रहा था. बिजुलिया मोड़ के बाद तो ऐसा लगा जैसे सच में किसी ऐसे जगह चले आये हैं, जहां कुछ अनहोनी होने वाली हो. नाकाबंदी शब्द एकदम से सामने था.
समय 11.15 जगह सियालजोरी थाना के पास धरना स्थल पर. लाल झंडा को उस इलाके में बुलंद करने वाले अरूप चटर्जी अपने समर्थकों के साथ बैठे हुए थे. ढोल, नगाड़ा और भाषण का रीमिक्स कानों में उनकी बोली और इरादे दोनों को बयां कर रही थी. कंपनी प्रबंधन और कुछ नेताओं के मुर्दाबाद का नारा रह-रह कर गूंज रहा था. महिलाओं की भीड़ देख कर ऐसा लगा जैसे आज आस-पास शायद ही किसी के घर में खाना बना होगा. बाधाडीह से धरनास्थल तक के सफर में धारा 144 क्या होती है, समझ पाया. तकनीकी रूप से प्रशासन ने कंपनी गेट से 500 गज दूरी तक में धारा 144 लगाया है. पर, अरूप चटर्जी की धारा 144 कंपनी से चास-तलगड़िया मोड़ जो करीब 15 किमी की दूरी तक में फैली थी लगी हुई थी.