– अक्षय कुमार झा/राजूनंदन –
बोकारो : पूरे साल की बात की जाये तो बोकारो शहर के आस-पास की राजनीति उतनी सुर्खियां नहीं बटोर पायी जितनी चाहिए थी. पर ऐसे कई काम हुए जो बोकारो राजनीति की दशा और दिशा दोनों तय कर सकती है.
दादा (समरेश सिंह) की अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर, आजसू में अंतर्कलह, मिहिर सिंह की राजनीति में फुल एंड फाइनल एंट्री, राजेंद्र महतो की पार्टी परिवर्तन की हवा, कांग्रेस को नौ साल के बाद जिलाध्यक्ष मिलना, रोहित लाल सिंह का देबारा जिलाध्यक्ष की कुरसी पर आसीन न होना, उमाकांत रजक की आखिरी समय में अपने लोगों से कहा-सुनी, बिरंची नारायण की राजनीति में वापसी के साथ भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष बनना, विधायक पुत्रों की राजनीति का ककहरा शुरू करना, धनबाद लोकसभा सीट के लिए बोकारो से दावेदारी के अलावा विस्थापित आंदोलन.
यह सभी घटनाएं राजनीति को बोकारो में जिंदा तो रख पायी, पर इन सब पर भारी पड़ गया निरसा विधायक मासस पार्टी के अरूप चटर्जी का चंदनकियारी में लाँच करना. एक नवंबर 2011 को तलगड़िया में इलेक्ट्रो स्टील के पास एक छोटी से बैठक के बाद 25 सितंबर 2013 को 287 लोगों के साथ गिरफ्तारी के बाद कोई शक नहीं कि श्री चटर्जी ने यहां की राजनीति चेहरे पर जोरदार तमाचा मारा.
इसकी गूंज बोकारो की राजनीति पर असर डाले न डाले इलेक्ट्रो स्टील को हमेशा सुनाई देगी. इसी दम पर श्री चटर्जी अब बीएसएल पर धावा बोलने और अपनी मौजूदगी चंदनकियारी के बाद बोकारो में दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.