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चार माह नहीं होगा कोई शुभ कार्य

बोकारो: आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि को देव शयनी या हरिशयनी के नाम से जाना जाता है. यह रविवार रात 8:24 बजे आरंभ होगी सोमवार रात 8:31 बजे तक रहेगी. ऐसे में देवशयनी एकादशी सोमवार को ही मनायी जायेगी. 22 नवंबर को पुन: जगेंगे भगवान विष्णु : भगवान विष्णु चार मास तक शयन के पश्चात देवोत्थान […]

बोकारो: आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि को देव शयनी या हरिशयनी के नाम से जाना जाता है. यह रविवार रात 8:24 बजे आरंभ होगी सोमवार रात 8:31 बजे तक रहेगी. ऐसे में देवशयनी एकादशी सोमवार को ही मनायी जायेगी.
22 नवंबर को पुन: जगेंगे भगवान विष्णु : भगवान विष्णु चार मास तक शयन के पश्चात देवोत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी, 22 नवंबर) को जगेंगे. इसके बाद से ही पुन: विवाहादि शुभ कार्य आरंभ हो जायेंगे.
क्या है हरिशयनी एकादशी
ऐसा प्रचलित है कि इस रोज से भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीरसागर में शयन करते हैं. इसी कारण इसे हरिशयनी या देवशयनी एकादशी कहा जाता है. पुराणों में भी ऐसा जिक्र आया है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने तक राजा बलि को दिये वरदान के अनुसार पाताल में उनके पास जाकर रहते हैं. कार्तिक शुक्ल एकादशी को वापस अपने लोक में लौटते हैं.
इन चार महीनों में क्या करें/ न करें
इन चार महीनों के लिए अपने अभीष्ट की सिद्धि के अनुरूप नित्य व्यवहार के पदार्थो के त्याग एवं ग्रहण विधान है. जैसे वाणी की मधुरता के लिए गुड़, दीर्घायु अथवा संतान प्राप्ति के लिए तैल का किंतु शत्रु शमन के लिए कड़वे तेल का, सौभाग्य प्राप्ति के लिए चमेली तेल का, मोक्ष के लिए पुष्पादि के भोग का त्याग किया जाता है. इसी प्रकार देह शुद्धि अथवा चर्म रोगों के निवारण के लिए परिमित परिमाण के अनुसार पंचगव्य, वंश वृद्धि के लिए दुग्ध का, सकल पुण्य प्राप्ति के लिए एक भुक्त भोजन करने का व्रत ग्रहण करें.
क्या होता है प्रभाव
इन चार महीनों में भगवान विष्णु के क्षीर सागर में शयन अथवा पाताल लोक में निवास के कारण ही इस दौरान विवाहादि शुभ कार्य वजिर्त रहते हैं. सभी एकादशियों की तरह इस एकादशी में भी भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है. परंतु इस रात्रि से भगवान विष्णु का शयन आरंभ होता है, अत: उनकी विशेष विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
कैसे करें पूजन
भगवान विष्णु की प्रतिमा को पूजन के लिए आसन पर आसीन करायें तथा उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म सुशोभित कर उनको पीतांबर से सजाएं. पंचामृत से स्नान कराने के बाद भगवान की धूप, दीप, पुष्प इत्यादि से पूजन कर घृत के दीपक से आरती उतारें. इससे पूर्व उन्हें पान एवं सुपारी अवश्य अर्पित करें. अन्य एकादशियों की तरह इसमें रात्रि जागरण नहीं किया जाता है. इस व्रत का पारण 28 जुलाई की सुबह सूर्योदय के पश्चात कभी भी किया जा सकता है.

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