बोकारो: आंदोलन की आड़ में दबाव बनाने की राजनीति ने बोकारो के औद्योगिक विकास को अवरुद्ध कर दिया है. बियाडा की सैकड़ों इकाइयां बंद हो गयी. बोकारो स्टील 50 वर्ष बाद भी 10 मिलियन टन उत्पादन क्षमता को प्राप्त नहीं कर पाया. अब आंदोलन का दंश नवोदित स्टील प्लांट इलेक्ट्रोस्टील ङोल रहा है. रोज नया आंदोलन हो रहा है.
एक गुट का आंदोलन शांत होता है तो दूसरा गुट का आंदोलन तैयार हो जाता है. चक्का जाम, नाकेबंदी, रोड जाम यहां की दिनचर्या में शामिल हो गयी है. झारखंड गठन के बाद दर्जनों इस्पात संयंत्र के निर्माण के लिए एमओयू हुआ. लेकिन, इलेक्ट्रोस्टील को छोड़ कर कोई प्लांट धरातल पर नहीं उतरा.
मित्तल व जिंदल भी प्रभावित : तीन मिलीयन टन उत्पादन क्षमता वाला स्टील प्लांट इलेक्ट्रोस्टील का निर्माण किया गया है, जिसे और आगे तक ले जाने की योजना थी. इसके साथ-साथ पावर प्लांट का के निर्माण की भी बात चल रही थी, जिसे फिलहाल रोकने का मन बनाया गया है. आंदोलन के कारण रैयतों के साथ-साथ चंदनकियारी व चास के लोग भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित है. दूसरी ओर, बोकारो में मित्तल व जिंदल ने भी यहां के माहौल को देखते हुए स्टील प्लांट लगाने का विचार फिलहाल त्याग दिया है.
टीम वर्क से बचा प्लांट : आर्थिक नाकेबंदी के कारण तीन दिनों तक लगभग दो हजार अधिकारी व कर्मी प्लांट में रहें. उनके बच्चे स्कूल नहीं जा सके और न ही बीमार परिजनों का समय पर इलाज हो पाया. इलेक्ट्रोस्टील प्लांट चाइनीज टेक्नोलॉजी पर आधारित है. इसके कारण अनवरत देखभाल जरूरी है. देखभाल में जरा भी चुक होती, तो प्लांट बैठ सकता था. अधिकारी व कर्मी ने प्लांट हित में अपने परिजनों के हितों को दरकिनार कर दिया. लगातार तीन दिन तक प्लांट में जमे रहे.