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बोकारो के लाल की देशभर में मची है धूम

बोकारो: छात्र-जीवन पर आधारित अच्छी किताबें अंगरेजी में ही लिखी जा सकती है, इस मिथक को झारखंड के बोकारो में पले-बढ़े-पढ़े युवा लेखक सत्य व्यास ने लगभग तोड़ दिया है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की पृष्ठभूमि पर आधारित और दिल्ली के हिंद युग्म प्रकाशन से हाल में ही प्रकाशित उनका हिंदी उपन्यास बनारस टॉकीज अपनी लोकप्रियता […]

बोकारो: छात्र-जीवन पर आधारित अच्छी किताबें अंगरेजी में ही लिखी जा सकती है, इस मिथक को झारखंड के बोकारो में पले-बढ़े-पढ़े युवा लेखक सत्य व्यास ने लगभग तोड़ दिया है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की पृष्ठभूमि पर आधारित और दिल्ली के हिंद युग्म प्रकाशन से हाल में ही प्रकाशित उनका हिंदी उपन्यास बनारस टॉकीज अपनी लोकप्रियता के कारण आज देश भर के पुस्तक-प्रेमियों के बीच चर्चा का केंद्र बना हुआ है. इससे न सिर्फ उनके माता-पिता, बल्कि पूरा शहर गौरवान्वित महसूस कर रहा है.
इंटरमीडिएट तक की शिक्षा बोकारो से : बीएसएल के नगर प्रशासन विभाग में डिप्टी टीए रहे व्यास ओझा और देव कुमारी के घर 1980 में जन्मे सत्य की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा बोकारो में ही हुई. उन्होंने बीआइवी सेक्टर-2डी से 1995 में 10वीं ओर बीआइवी सेक्टर-8बी से 1997 में 12वीं की परीक्षा पास की.
इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए बीएचयू चले गये. यहां हॉस्टल में रहने के दौरान ही सब-अर्बन छात्रों की रोजमर्रा की दिनचर्या, संवाद, प्राथमिकताएं और चिंताओं को करीब से समझने के बाद उनके मन में बनारस टॉकिज लिखने का ख्याल आया. फिलहाल सव्य व्यास कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, कोलकाता में कार्यरत हैं.
बनारस टॉकीज : कॉमिक थ्रिलर
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भगवान दास हॉस्टल की पृष्ठभूमि पर आधारित बनारस टॉकीज की कहानी काल्पनिक होते हुए भी छात्र जीवन की धमाचौकड़ी और धींगामुश्ती के बीच कॅरियर के साथ-साथ गर्लफ्रेंड की चिंता समेटे यथार्थ के काफी करीब लगती है. कहानी की बुनावट और भाषा में ऐसा प्रवाह है कि एक बार शुरू करने के बाद पाठक खुद को पूरा पढ़ने से रोक ही नहीं पाता. पात्रों के परिचय और हॉस्टल में रैगिंग से कहानी की शुरुआत होती है. शैली में सहज हास्य का ऐसा मिश्रण, कि पाठक कई बार हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाये. लॉ के क्लासेज, सेमेस्टर एक्जाम्स और गल्र्स हॉस्टल के बीच से होते हुए कहानी में हर वो रंग मौजूद है, जो पाठकों को अंत तक बांधे रखती है. कहानी का तार अंत में बनारस में हुए सीरियल ब्लास्ट से जुड़ता है. इसके चलते इसे कॉमिक-थ्रिलर कहा जा सकता है.
चूंकि, मेरी पीढ़ी चेतन भगत को पढ़ते हुए बड़ी हुई है. इसलिए मेरे लेखन में ‘फाइव प्वाइंट समवन’ के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता. बनारस टॉकिज पढ़ते हुए आपको थ्री इडियट फिल्म की याद आना स्वाभाविक है, लेकिन यह एक कॉमिक-थ्रिलर है.
सत्य व्यास, लेखक-बनारस टॉकिज

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