– अक्षयकुमारझा/राजूनंदन–
यहां विकास के मुद्दे पर नहीं, समस्याओं को लेकर होती है राजनीति
बोकारो/चास : हल्की बारिश में घरों के आगे जमाव. घंटों बिजली का इंतजार. प्रत्येक दिन सुबह–शाम सड़क पर जाम. तंग गलियां. बदबूदार रास्ते. हर गड्ढे में पलती बीमारी. पुराने जमाने के जैसे आज भी पीने का पानी संजोना दस्तूर है. सरकारी नलों के आगे प्लास्टिक के डब्बों की लंबी लाइन.
सिमटते साधन और बढ़ता व्यापार. कुछ ऐसी ही सूरत है बोकारो से सटे चास शहर की. ताज्जुब होता है सोच कर कि इस शहर से सटे बीएसएल कारखाने से सालाना औसतन 500 करोड़ रुपये की आमद होती है. चास की ऐसी हालत के लिए जिम्मेवार कौन है, यह तो बड़ी बहस का विषय है.
पर सच है कि चास को आज तक कुछ खास मिल ही नहीं पाया. इस वजह से चास परेशानियों का शहर बन कर रह गया है. यही कारण है कि इस शहर की राजनीति विकास को लेकर नहीं बल्कि यहां की समस्याओं को लेकर होती है.