बोकारो : इसे संयोग नहीं कहा जा सकता है. और न ही लापरवाही कही जा सकती है. बोकारो में एक के बाद एक-एक कर चार सफेद बाघों की मौत का कारण पर से परदा उठ चुका है.
दरअसल बोकारो की आबो-हवा ऐसी है ही नहीं कि सफेद बाघ यहां जीवित रह पाये. नन्हें शावकों को हृदयघात हो जाता है, तो बड़े नर को लकवा मार जाता है. लाख कोशिशों के बाद भी एक शावक का डायरिया खत्म नहीं किया जा सका. आखिर में वो भी नहीं रहा.
अब मादा बाघ ‘गंगा’ की भी यही दुर्गति न हो इसलिए जवाहर लाल नेहरू जैविक उद्यान प्रबंधन उसके लिए नया घर ढूंढ़ रहा है. टाटा, रांची और भिलाई जैसे जैविक उद्यानों से बात हो रही है. जल्द ही यह मादा अपने नये जीवन साथी के साथ किसी दूसरे शहर में अपनी बाकी की उम्र गुजारेगी. फिर बोकारो में कभी भी सफेद बाघ नजर नहीं आयेगा. कारण, उद्यान प्रबंधन ने अब सफेद बाघ नहीं लाने का निर्णय किया है.
भिलाई मैत्री बाग से आयी थी जोड़ी
सफेद बाघ की जोड़ी (सतपुड़ा व गंगा) जैविक उद्यान में भिलाई के मैत्री बाग से लायी गयी थी. उद्यान प्रबंधन के साथ-साथ बोकारोवासी, खासकर छोटे-छोटे बच्चे सफेद बाघ को लेकर काफी उत्साहित थे. सफेद बाघ के जोड़े सतपुड़ा व गंगा से अमर, अकबर व एंथोनी का जन्म 12 मई 2012 को हुआ था.
– सुनील तिवारी –