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पेट के भूगोल में उलझी हुई है बेरमो की शारो

पांच दिनों से पेट में नहीं गया अन्न का एक दाना बीमारी व उम्र के बोझ के बीच बेटी शांति देवी बनी है सहारा बोकारो : ‘घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है/बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है”…. दुष्यंत कुमार के बाद हिंदी ग़ज़ल को जनवादी तेवर और तमीज देनेवाले […]

पांच दिनों से पेट में नहीं गया अन्न का एक दाना

बीमारी व उम्र के बोझ के बीच बेटी शांति देवी बनी है सहारा
बोकारो : ‘घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है/बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है”…. दुष्यंत कुमार के बाद हिंदी ग़ज़ल को जनवादी तेवर और तमीज देनेवाले अदम गोंडवी इस शेर में विकास के अंतर्विरोध और व्यवस्था की विडंबना को तार-तार करते हैं. बेरमो रेलवे स्टेशन के करीब रहने वाली 75 वर्षीया शारो देवी की जिंदगी अदम गोंडवी की गजल की गवाह है. वृद्धा शारो की जिंदगी पर समय व तंत्र की मार ऐसी पड़ी कि पांच दिनों से अन्न की भेंट नहीं हुई. थरथराती जुबान ‘अच्छे दिनों’ के दावे को फीका कर देती है.
बेटी की दिहाड़ी मजदूूरी थी सहारा : शारो देवी की जीवन नैया बेटी शांति देवी के सहारे थी. शांति दिहाड़ी मजदूरी कर दो जून की रोटी का जुगाड़ कर लेती थी. दो साल से शारीरिक अक्षमता के कारण उसका काम पर जाना कम हो गया है. इधर, कुछ महीनों से शारो की तबीयत ज्यादा खराब रह रही है. देखभाल व अनिश्चितता के डर से बेटी शांति मजदूरी करने नहीं जा पा रही थी. ऐसे में जमा पूंजी खत्म हो गयी. 15 दिन तक तो एक टाइम का खाना मिलता रहा, पर अब उस पर भी आफत है.
दूसरी बेटी ने दिया था 10 किलो चावल : शारो की दूसरी बेटी मालती देवी (गोमिया) ने एक माह पहले 10 किलो अनाज दिया था. पारिवारिक हस्तक्षेप के कारण मदद जारी नहीं रह पायी. शांति बताती है : मां को विधवा पेंशन 600 रु मिलता है. इससे दवा व कुछ अनाज का जुगाड़ हो जाता है. सबकुछ खत्म हो जाने पर लोगों से मांग कर खाने की व्यवस्था करनी पड़ती है. पिछले 10 दिनों में ऐसा हुआ कि किसी के सामने हाथ फैलाने का भी वक्त नहीं मिला.
सरकार जी! जरा चश्मा का नंबर बदलिए…: गरीबों की राहत के लिए हैं तो कई कल्याणकारी योजनाएं, पर शारो के लिए योजनाओं का दरवाजा बंद हो गया है. दुष्यंत कुमार ने व्यवस्था की इसी विद्रूपता को व्यक्त किया है : ‘यहां तक आते-आते सूख जाती हैं नदियां, हमें मालूम है कि पानी कहां ठहरा हुआ होगा’. वृद्धा के बेटी शांति देवी बताती है : कैंप लगाकर राशन कार्ड बनाया गया. बहुत सवाल किया गया. अनपढ़ जुबान ने जवाब भी दिया. नतीजा सादा राशन कार्ड बन गया. सादा राशन कार्ड के मुताबिक शारो देवी को सिर्फ केरोसिन तेल मिलता है. इससे चूल्हा तो जल जाता है पर, रोटी नहीं सिक पाती.
बेटे की बेरुखी ने खड़ा किया मुश्किलों का पहाड़ : शारो देवी को परेशानी की वजह सिर्फ शासन की उपेक्षा ही नहीं, बल्कि इकलौता बेटा (महेंद्र डोम) ने यह जख्म गहरा किया है. शारो बताती है : पति बसुलिया डोम रेलवे में थे. उनकी मृत्यु के बाद रिश्तेदार के सहयोग से बेटा महेंद्र डोम को रेलवे में नौकरी लगी. नौकरी के फौरन बाद उसने मां से रिश्ता तोड़ लिया. शारो की मानें तो बेटा ने जीते-जी मां का श्राद्धकर्म कर निश्चिंत हो गया है. महेंद्र डोम फिलहाल टनकुप्पा स्टेशन में कार्यरत है. शारो बताती है : संपर्क करने पर वह देखना तक उचित नहीं समझता.
कैसे सिद्ध करें कि
पति नहीं रहे
शारो देवी की देखभाल करने वाली बेटी शांति देवी की किस्मत भी कम खोटी नहीं. 18 साल की आयु में शांति की शादी हुई थी, पर शादी के कुछ माह के बाद ही पति घर-परिवार छोड़ कर चले गये. इसके बाद उनकी एक झलक तक नहीं दिखी. शांति कहती हैं : जिस पति की झलक 26 साल से नहीं मिली, उसे जिंदा कैसे माना जाये. वह भी अपने को विधवा ही मानती है. इसलिए वह भी विधवा पेंशन का दावा करती है, पर सरकारी महकमा इसकी इजाजत नहीं देता.
अभाव के घड़े में मदद की बूंद
शुक्रवार को शारो की माली हालत से अवगत होने पर युवा नेता समीर गिरी ने अपने दोस्तों को इसकी सूचना दी. सामाजिक संस्था प्रयास… एक कोशिश के साहिल सिंह, वार्ड पार्षद भरत वर्मा की ओर से खाने की व्यवस्था की गयी. शनिवार को बोकारो की नेत्री प्रगति शंकर ने शारो देवी के लिए भोजन व कपड़ा की व्यवस्था की.
राशन कार्ड की जगी आस
शारो देवी के मामले में मुखिया रूपा देवी के पति हरेराम यादव की सक्रियता ने एक उम्मीद जगायी है. हरेराम ने बताया : वृद्धा ने किसी अन्य के कैंप में राशन कार्ड बनवाया था. इस कारण गलती से सादा कार्ड बन गया है. इसे लाल राशन कार्ड में बदला जायेगा. सोमवार को इस दिशा में पहल की जायेगी. उन्होंने शांति देवी के विधवा पेंशन मामला में भी पहल करने का भरोसा दिया है. वह कहते हैं : योजनाओं का लाभ जरूरतमंद परिवार को दिलाया जायेगा.

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