बोकारो: सातवीं कक्षा में मैं पढ़ाई में अच्छा था. साथ ही मुङो क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था. मेरा चयन स्कूल क्रिकेट टीम में बतौर बल्लेबाज हो गया था. स्कूल खत्म होने के बाद स्कूल ग्राउंड में ही दो बजे से चार बजे तक प्रतिदिन अपने साथी क्रिकेटरों व कोच के साथ अभ्यास किया करता था.
लगातार घर देर से पहुंचने पर पापा ने पूछा : स्कूल से आने में बड़ी देर होती है? मैंने बताया : स्कूल क्रिकेट के लिए मेरा चयन हो गया है. अभ्यास करने की वजह से दो घंटे देर से आता हूं. पिताजी ने बीच में ही रोक कर कहा : क्रिकेट खेलना भूल जाओ. मुङो पसंद नहीं.
पिताजी के इस निर्णय के बावजूद मैं स्कूल पीरियड के बाद अभ्यास करने पहुंच जाता. दो-चार दिन बाद फिर से पिताजी को मालूम पड़ा कि घर लेट आता हूं. इस बार उन्होंने मेरी अच्छी खबर ली. अगले दिन स्कूल पहुंचने पर मेरा मूड अपसेट था. मुङो हर हाल में क्रिकेट खेलना था. स्कूल ओवर होने के बाद मैं ग्राउंड पहुंचा. जब मेरी बल्लेबाजी आयी, तो मैंने मन में ठाना आज कुछ ऐसी बल्लेबाजी करूं. इससे पिताजी तक यह खबर खुद-ब-खुद पहुंच जाये कि मैं क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता हूं.
फिर क्या था, बल्लेबाजी करते वक्त अचानक से मेरी नजर साइंस लैब पर पड़ी. फिर क्या था. अगली गेंद पर ऐसा बल्ला चलाया कि गेंद साइंस लैब का शीशा तोड़ते हुए लैब के अंदर प्रवेश कर चुकी थी. लैब के कुछ सामान को भी क्षति पहुंची थी. मुझ पर स्कूल प्रशासन की ओर से 175 रुपये का जुर्माना लगाया गया. इसकी खबर पिताजी को लग गयी. वह फाइन भरने के लिए स्कूल आये. मगर, फाइन पहले ही कोच ने माफ करवा दिया था. प्राचार्य ने पिताजी से कहा : आपका बेटा इतनी अच्छी बल्लेबाजी करता है. उसे क्रिकेट क्यों नहीं खेलने देते. अच्छा क्रिकेटर बन सकता है. मेरा प्लान सफल हुआ. पिताजी मान गये. सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज तक स्कूल में मेरे नाम पर 175 रुपये का जुर्माना दर्ज है, जो मैंने स्कूल के मुताबिक नहीं चुकाया है. जब कभी पुराने दोस्त व यार मिलते हैं, इस घटना की चर्चा अवश्य होती है. मेरे दोस्त मुङो चिढ़ाते हैं : बाबू साहब! जुर्माना कब दीजिएगा.