रांची: पुलिस विभाग के अधिकारी चाहते हैं कि नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ दो लाख रुपये तक के इनाम की घोषणा का अधिकार पुलिस अफसरों को मिले. सरकार ने जो आदेश जारी किया है, उसके मुताबिक जिले के एसपी 50 हजार, डीआइजी एक लाख और डीजीपी दो लाख तक के इनाम की घोषणा कर सकते हैं. इसमें शर्त यह है कि इनाम की राशि की घोषणा से पहले सरकार से अनुमोदन लेना जरूरी है.
पुलिस मुख्यालय ने गृह विभाग को एक प्रस्ताव भेज कर सरकार के अनुमोदन की अनिवार्यता खत्म करने की मांग की है. प्रस्ताव में कहा गया है कि जब पुलिस के एसपी से लेकर डीजीपी तक के अधिकारी को इनाम की घोषणा करने की शक्ति है, तो फिर अनुमोदन की बाध्यता के आदेश के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है.
उल्लेखनीय है कि पिछले साल चाईबासा पुलिस ने पीएलएफआइ के जिन कथित नौ उग्रवादियों को सरेंडर कराया था. उन पर इनाम की घोषणा डीजीपी के स्तर से की गयी थी. इनाम की घोषणा के लिए सरकार से अनुमति नहीं ली गयी थी. गृह विभाग ने डीजीपी से स्पष्टीकरण भी पूछा था. सरेंडर का यह मामला विवादों में हैं. विवाद की वजह सरेंडर करनेवाले नौ में से आठ कथित उग्रवादी पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं थी. नौ में से सात उग्रवादी एक ही गांव के थे और एक तो नाबालिग था. गृह विभाग के अधिकारियों ने सभी के उग्रवादी होने पर गंभीर सवाल उठाये थे.
17 सीएलए व कुर्की की अनिवार्यता भी खत्म करें
पुलिस मुख्यालय द्वारा भेजे गये प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि कई नक्सली-उग्रवादी ऐसे हैं, जो संगठन में बड़े पद पर हैं. दूसरे राज्य में उनके खिलाफ मामला दर्ज है, पर झारखंड में कोई मामला दर्ज नहीं है. इस कारण झारखंड में न तो उनके खिलाफ 17 सीएलए एक्ट (क्रिमिनल लॉ अमेडमेंट एक्ट) के तहत मामला दर्ज किया है और न ही उनके खिलाफ कुर्की-जब्ती की कार्रवाई की गयी है. इस कारण बिहार, ओड़िसा, छत्तीसगढ़ या पश्चिम बंगाल से झारखंड आकर काम करनेवाले नक्सलियों-उग्रवादियों के खिलाफ इनाम की घोषणा नहीं हो पाती है. इसलिए सरकार इसकी अनिवार्यता को भी खत्म करे, ताकि ऐसे नक्सलियों पर इनाम की घोषणा की जा सके. उल्लेखनीय है कि सरेंडर व पुनर्वास के लिए सरकार ने जो नियम तय कर रखे हैं, उसके मुताबिक उन नक्सली-उग्रवादी के खिलाफ इनाम की घोषणा की जा सकती है, जिनके खिलाफ 17 सीएलए के तहत प्राथमिकी दर्ज होगी और कुर्की-जब्ती की कार्रवाई कर ली गयी होगी. गौरतलब है कि पहले सरकार नक्सलियों के पद के आधार पर इनाम की घोषणा करती थी. तब नक्सलियों के नाम की जरूरत नहीं पड़ती थी, लेकिन 2015 में पुलिस मुख्यालय की अनुशंसा पर ही सरकार ने नाम के आधार पर इनाम की घोषणा करने का आदेश जारी किया था.