चयन के बाद इन्हीं अधिकारियों की रिपोर्ट पर पैसे का भुगतान लाभुक को करना था. उपरोक्त कोई भी अधिकारी भूमि संरक्षण विभाग के अधीन नहीं थे. इस कारण भूमि संरक्षण विभाग द्वारा बार-बार कहने के बाद भी आदेश का पालन नहीं हो रहा था. विभागीय सचिव द्वारा बार-बार दबाव बनाये जाने के बाद तय लक्ष्य का करीब 90 फीसदी से अधिक काम तो हो गया, लेकिन लाभुकों को भुगतान में काफी परेशानी हुई. मुख्यालय स्तर पर करायी गयी समीक्षा के बाद इसमें कुछ प्रगति तो हुई, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं निकल पाया.
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अब डोभा नहीं बनवायेगा कृषि विभाग
रांची : अगले वित्तीय वर्ष (2017-18) में कृषि विभाग डोभा नहीं बनायेगा. कृषि विभाग के अधीन संचालित भूमि संरक्षण निदेशालय की ओर से अगले साल के लिए डोभा की योजना नहीं ली गयी है.भूमि संरक्षण विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष में 90 हजार से अधिक डोभा का निर्माण किया है. कुल एक लाख डोभा का […]
रांची : अगले वित्तीय वर्ष (2017-18) में कृषि विभाग डोभा नहीं बनायेगा. कृषि विभाग के अधीन संचालित भूमि संरक्षण निदेशालय की ओर से अगले साल के लिए डोभा की योजना नहीं ली गयी है.भूमि संरक्षण विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष में 90 हजार से अधिक डोभा का निर्माण किया है. कुल एक लाख डोभा का लक्ष्य राज्य सरकार ने कृषि विभाग को दिया था. इसके लिए करीब 200 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था. डोभा निर्माण में तकनीकी परेशानी को देखते हुए भूमि संरक्षण विभाग ने ऐसा किया.
केवल पैसा देने का काम था भूमि संरक्षण का : चालू वित्तीय वर्ष में भूमि संरक्षण विभाग ने डोभा का निर्माण कराया है. विभाग में जो राज्यादेश निकाला था, उसमें भूमि संरक्षण विभाग को केवल पैसा देने का काम था. लाभुक चयन की जिम्मेदारी प्रखंड को दी गयी थी. प्रखंड से चयनित डोभा पर विभाग को काम करना था. इसकी मॉनिटरिंग का काम प्रखंड कृषि पदाधिकारी, सहकारिता पदाधिकारी व जनसेवक को दिया गया था. पैसे का भुगतान सीधे लाभुक के खाते में करना था.
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